Tuesday, March 12, 2019

Methods and techniques of Plant layout in hindi by Swami Sharan

Hello guys,

   Today I will discuss about methods and techniques of Plant layout.

प्लांट लेआउट के 6 सबसे महत्वपूर्ण तकनीक


1. प्रक्रिया चार्ट:

यह एक ग्राफ है जिसमें संगठन के कार्य से लेकर अंतिम चरण तक की विभिन्न गतिविधियों और कार्यों के बारे में विवरण है।

2. प्रक्रिया प्रवाह आरेख:

यह चार्ट को संसाधित करने के लिए एक सहायता है। यह मशीनों की स्थिति, प्रत्येक मशीन द्वारा कवर क्षेत्र, आंतरिक परिवहन और उत्पादन से संबंधित अन्य कार्यों से संबंधित विवरण से संबंधित है। यह मॉडल आरेख कागज पर तैयार किया जाता है।

3. टेम्पलेट:

एक मशीन द्वारा कवर क्षेत्र को टेम्पलेट बनाने के लिए एक मोटे कागज से बड़े पैमाने पर काटा जाता है। न केवल मशीनें बल्कि फर्नीचर, उपकरण और अन्य घटकों द्वारा कवर किया गया स्थान भी एक टेम्पलेट बना सकता है। इन्हें अच्छी तरह से व्यवस्थित करने के लिए लेआउट की वास्तविक योजना का प्रतिनिधित्व किया जा सकता है।

4. माडल:

मशीनरी, उपकरण और अन्य उपकरणों और घटकों के तीन आयामी लकड़ी के मॉडल तैयार किए जा सकते हैं। इन मॉडलों को देखकर भी एक आम आदमी संयंत्र के लेआउट के बारे में एक विचार बना सकता है। लेकिन यह तकनीक बहुत महंगा है और केवल बड़ी चिंता इस तरह के उपाय को स्थापित करने के लिए खर्च कर सकती है।

5. चित्र:

लेआउट चित्र दीवारों, सीढ़ी, मशीनों और उपकरणों आदि को दिखाने वाले ड्राफ्ट पुरुषों द्वारा तैयार किए जा सकते हैं।

6. मशीन डाटा कार्ड:
ये कार्ड प्लांट में काम करने वाली विभिन्न मशीनों से बंधे होते हैं। ये मशीन की विभिन्न मुख्य विशेषताओं या विशेषताओं के बारे में मूल्यवान जानकारी प्राप्त करते हैं। दक्षता, क्षमता अंतरिक्ष क्षेत्र जो मशीन द्वारा कवर की जाती है और ऑपरेटिंग सिस्टम की तकनीक आदि।









   🏨🏫✍✍✍✍Po Post by Swami Sharan

Friday, March 1, 2019

WHAT IS SEBI ? WHAT ARE THE ROLE OF SEBI. By Swami Sharan

वर्ष 1992 के शेयर घोटाले के परिप्रेक्ष्य में निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ (Securities and Exchange Board of India-SEBI) ने भारतीय पूंजी बाजार की गतिविधियों पर एक के बाद एक अपना शिकंजा कसा है ।
पहले शेयर बाजार के दलालों व उपदलालों के कार्यकलापों तथा इनसाइडर ट्रेडिंग के लिए आचार संहिता निर्धारित करने के पश्चात मर्चेण्ट बैंकरों के लिए विस्तृत नियमावली की घोषणा की गई । 1 जनवरी, 1993 से मर्चेन्ट बैंकर के क्रियाकलापों को सरकार द्वार सेबी के दायरे में लाने की घोषणा की गई ।
नये नियमों के तहत अब कोई भी व्यक्ति अथवा फर्म सेबी से पंजीकरण प्रमाण-पत्र प्राप्त किये बिना मर्चेन्ट बैंकर के रूप में कार्य नहीं कर सकेगा । मर्चेन्ट बैंकर के झर्यकलापों के लिये भी एक आचार-संहिता की घोषणा की गई है । मर्चेन्ट बैंकरों को 4 श्रेणियों में विभाजित करते हुए प्रत्येक श्रेणी के अन्तर्गत उनके कार्यों को परिसीमित किया गया है ।

मर्चेन्ट बैंकर्स, जो कम्पनियों के शेयर निर्गमन में सहायक होते है, के लिए यह निर्देशित किया गया है कि वे यह सुनिश्चित करे कि शेयरों, के आबंटन में कोई अनियमितता न हो तथा आबंटन न होने की दशा में निवेशकों की आवेदन राशि ब्यई वापसी में विलम्ब न हो ।
मर्चेन्ट बैंकर्स के पश्चात् पोर्टफोलियो मैनेजरों की बारी आई । जानकी रमन समिति ने अपनी तीसरी रिपोर्ट में विशेषकर विदेशी बैंकों द्वारा पोर्टफोलियो मैनेजमेट स्कीम के व्यापक दुरुपयोग का उल्लेख किया था । निवेशकों के हितों कई सुरक्षा के लिए अब पोर्टफोलियो मैनेजरों के लिए भी सेबी में पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है ।
पोर्टफोलियो मैनेजरों के लिए घोषित नियमावली में कहा गया है कि पंजीकरण के लिये व्यक्ति अथवा फर्म की है सियत कम से कम 50 लाख रुपये ही होनी चाहिए तथा निवेशके से प्राप्त धनराशि का उपयोग पोर्टफोलियो मैनेजों द्वारा बिलो की कटौती अथवा ‘बदला’ के वित्तीयन हेतु नहीं किया जाए । नियमावली में यह भी निर्देश है कि पौर्टक्टेलियो मैनेजर प्रतिभूतियों के मिथ्या बाजार मई संरचना अथवा इनके मूल्यों के तोड़-मरोड में प्रतिभागी नहीं बनेंगे ।
20 जनवरी, 1993 को सेबी ने म्यूचुअल फण्ड्स के क्रियाकलापों क भी सुचारु करने के लिए एक विस्तृत नियमावली की घोषिणा की । सेबी द्वारा अब केवल उन्हीं म्यूचुअल फण्ड्स को पंजीकरण प्रदान किया जाएगा जो कुशल एवं सुव्यवस्थित व्यापार कर सकेंगे । इसे निर्धारित करने के लिये प्रायोजक का गत वर्षों का रिकार्ड देखा जाएगा ।


प्रायोजक का वित्तीय सेवाओं द्वारा सुस्वस्थ व्यापारिक लेन-देन का कम से कम 5 वर्ष का अनुभव होना चाहिए । म्यूचुअल फण्ड्स के लिए जो आचार संहिता घोषित की गई है, उसमें एक प्रावधान यह भी है कि फण्ड द्वारा किसी भी परिसीमित योजना में एकत्रित हो जाने वाली धनराशि 20 करोड़ रुपये तथा खुली योजना में 50 करोड रुपये से कम की नहीं होनी चाहिए ।
यदि किसी योजना में फण्ड को इससे कम राशि प्राप्त होती है तो पूरी धनराशि निर्गम बन्द होने की तिथि से 6 सप्ताह के अन्दर ही निवेशकों को लौटानी होगी । नियमों के तहत अब फण्ड को अपनी प्रत्येक योजना का वार्षिक विवरण प्रकाशित करना अनिवार्य है । सेवी को यह अधिकर दिया गया है कि वह प्रत्येक म्यूचुअल फण्ड के हिसाब-किताब की जाँच के लिए अपना ऑडीटर नियुक्त कर सकता है ।
‘सेबी’ हमारे देश के प्राथमिक एवं सहायक, दोनों प्रकार के प्रतिभूति बाजारों से का समुचित नियमन एवं नियन्त्रण करता है । इस महत्वपूर्ण कार्य में ‘सेबी’ संवर्धनात्मक, नियोजनकर्ता एवं पथ-प्रदर्शक की भूमिकायें भी निभाता है । प्रतिभूति बाजार से ‘सेबी’ की भूमिका को समझाने के लिए यहाँ पर हम प्राथमिक एवं सहायक बाजारों के सन्दर्भ विवेचन प्रस्तुत कर रहे है ।

(I) प्राथमिक बाजार में ‘सेबी’ की भूमिका (Role of SEBI in Primary Market):

प्राथमिक बाजार में ‘सेबी’ की भूमिका नये निर्गमों के सम्बन्ध में है । इसने निवेशों, विशेषकर छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है ।
प्राथमिक बाजार में ‘सेबी’ की भूमिका को इस क्षेत्र में इसके द्वारा किये गये महत्वपूर्ण अग्रलिखित योगदान से स्पष्टत समझा जा सकता है:
1. प्रविवरण के प्रारूप में सुधार:
पर्याप्त सूचनायें प्रदान करने तथा प्रविवरण के माध्यम से कम्पनियों को अधिक पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से ‘सेबी’ ने प्रविवरण का नया प्रारूप तैयार किया है । इसमें कुछ ऐसे नये शीर्षकों का समावेश किया गया है, जिससे कम्पनियों को अधिक सही व व्यापक सूचनायें उपलब्ध करवानी पडती है ।
2. जोखिम-घटकों को प्रकट करना अनिवार्य:
  प्रत्येक कम्पनी को नये तथा अधिकार निर्गमन के समय अपनी परियोजनाओं से सम्बन्धित ऐसे जोखिम-घटकों को अनिवार्य रूप से उजागर करना होगा जो प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से निवेशकों के हितों को प्रभावित कर सकते है ।
कम्पनियों को निम्नलिखित के बारे में स्पष्टतः उल्लेख करना होगा जो साधारणतः प्रविवरण में या किसी अन्य सार्वजनिक माध्यम से स्पष्ट किये जा सकते हैं:
(i) परियोजना के पूरा होने वाला बिलम्ब तथा इसकी बढी हुई लागतें ।
(ii) परियोजना के सम्बन्ध में प्रवर्तकों का आलोचनात्मक मूल्यांकन ।
(iii) निर्गमन के समय तक ऐसी वैधानिक अनुमतियाँ जो प्राप्त नहीं हो सकी हैं ।
(iv) कच्चे माल के मिलने में आ रही/आने वाली बाधायें ।
(v) उत्पादन के विपणन में बाधायें ।
(vi) विदेशी विनिमय दर की सवेदनशीलता (अचानक होने वाली उच्चावचन) का परियोजना पर प्रभाव ।
3. पृथक करने योग्य संक्षिप्त प्रविवरण की शुरुआत:
‘सेबी’ ने एक ऐसा प्रविवरणयुक्त आवेदन-पत्र विकसित किया है । जिसमें संक्षिप्त में प्रविवरण की महत्वपूर्ण जानकारी है तथा जिसे अलग किया जा सकता है । इससे विनियोजकों को विनियोग हेतु आवेदन करते समय ही कम्पनी तथा उसके परियोजनाओं के सम्बन्ध में सभी प्रमुख बातों की संक्षिप्त जानकारी उपलब्ध हो जाती है ।
4. अंशों के आबंटन व सूचीयन को पूरा करना:
कम्पनियों के अंशों के आबंटन व उनके सूचीयन को निर्दिष्ट समय पर पूरा कराने के उद्देश्य में ‘सेबी’ ने महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं । अब स्कन्ध विनिमय केन्द्र कम्पनी की कुल निर्गमन राशि का एक प्रतिशत जमा करने लगे है । यदि कम्पनी के द्वारा अंशों के आबंटन, राशि वापस करने या अंशों के सूचीयन में कोई विलम्ब या त्रुटि होती है तो, जमा की गयी राशि को जब्त किया जा सकता है तथा निवेशक एवं आवेदनकर्ता को राहत प्रदान की जाती है ।
5. मर्चेन्ट बैंकर्स का पंजीयन:
प्राथमिक बाजार में बैंकर्स द्वारा ही नये निर्गमनों का प्रबन्ध किया जाता है तथा प्रवर्तकों को आवश्यक सहायता प्रदान की जाती है । ‘सेबी’ ने इनका पंजीयन अनिवार्य कर दिया है । ‘सेबी’ ने इन्हें कम्पनी प्रविवरण में उल्लेखित बातों से लेकर नये निर्गमनों की समस्त औपचारिकताओं को पूरा करने तक, उत्तरदायी ठहराने के लिए नये नियम बनाये है ।
6. प्रमुख संस्थाओं का पंजीयन:
नये निर्गमनों से सम्बन्धित प्राथमिक बाजार की अन्य प्रमुख संस्थाओं जैसे-निर्गमन प्रबन्धक, बैंकर, अभिगोपक आदि के पंजीयन के लिए ‘सेबी’ द्वारा व्यवस्था की गयी है । इस कार्य का प्रमुख उद्देश्य निर्गमों को सही व उचित ढंग से निष्पादित करवाना है तथा इस प्रक्रिया के दोषों व त्रुटियों पर कडी निगरानी रखना है ।
7. निवेशकों की समस्याओं का समाधान:
निवेशकों की समस्याओं, शंकाओं तथा शिकायतों के समाधान हेतु ‘सेबी’ पूर्णतः सजग रख सक्रिय है । लम्बे अन्तराल के बाद भी जब कम्पनियाँ निवेशकों की शिकायतों व समस्याओं पर ध्यान नहीं देती तब ‘सेबी’ को सूचित करने पर, ‘सेबी’ द्वारा हस्तक्षेप किया जाता है । यदि समस्या कम्पनी के स्तर की है तब कम्पनी द्वारा अथवा ‘सेबी’ के स्वयं के द्वारा उसे हल करने के प्रयास कराये/किये जाते है ।
8. विनियोजक संघों का पंजीयन:
विनियोजकों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के उद्देश्य से ‘सेबी’ ने विनियोजक संघों का पंजीयन करना शुरू किया है । विनियोजक संघों के माध्यम अनेक सूचनाये सार्वजनिक प्रकाशन माध्यमों में प्रमारित ‘सेबी’ द्वारा सही मार्गदर्शन के लिए कुछ पुस्तकों का प्रकाशन भी किया गया है ।
10. ‘स्टॉक-इन्वेस्ट’ योजना लागू करना:
इस योजना को लागू करवाने में ‘सेबी’ ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है । ‘स्टॉक-इन्वेस्ट’ बैंकों के द्वारा जारी अंशों के आवेदन-पत्र के साथ लगा सकता है । जब तक ‘स्टॉक-इन्वेस्ट’ जारी करने वाले बैंक के पास जमा रहती है । जब कम्पनी आवेदनकर्ता को अंश आबंटित कर देती है को भेज देता है ।
11. पारदर्शिता से निर्गमनों में विश्वास:
उपरोक्त प्रयासों द्वारा नये निर्गमनों में पारदर्शिता लाने का प्रयास किया गया है । ‘सेबी’ ने मार्गदर्शक नियमों की घोषणा भी की है । इसके फलस्वरूप नये निर्गमनों के पर्याप्त सूचनाओं के साथ-साथ प्रीमियम निर्धारित करने के सूत्रों का भी प्रकाशन किया जाने लगा है ।
अब कम्पनियों को अपने द्वारा वसूली की जाने वाली प्रीमियम राशि का औचित्य व आधार बताना पड़ता है । इतना ही नहीं, बल्कि इसके अलावा इन्हें अपनी परियोजना के भावी वर्षों के अनुमानित परिणामों का उल्लेख करना पडता है । अब ऋण-पत्रों के लिए भी (18 से अधिक अवधि के) जारी करने से पूर्व प्रत्येक संस्था को साख-मूल्यांकन कराना पडता है ।

(II) सहायक बाजार में सेबी की भूमिका (Role of SEBI in Secondary Market):

सहायक बाजार में ‘सबी’ की भूमिका स्कन्ध विनिमय केन्द्रों के कार्यकलापों में मात्रात्मक (Quantitative) एवं गुणात्मक (Qualitative) सुधार लाने से सम्बन्धित है ।
इसे निम्नलिखित बिन्दु-विश्लेषण से समझा जा सकता है:
1. स्कन्ध विनिमय केन्द्रों का नेटवर्क तैयार:
‘सेबी’ ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है । आज देश भर में सम्बन्ध विनिमय केन्द्रों का एक विकसित नेटवर्क तैयार हो गया है । ‘सेबी’ की स्थापना के बाद आठ नये स्कन्ध-विनिमय केन्द्र स्थापित किये गये हैं । देश में राष्ट्रीय सम्बन्ध विनिमय केन्द्र के अलावा 23 अन्य स्कन्ध विनिमय केन्द्र कार्य कर रहे हैं । इसमें छोटी कम्पनियों व निवेशकी के लिए एक ‘ओवर द काउण्टर एक्सचेंज ऑफ इण्डिया- OTCEI’ भी सम्मिलित है ।
2. स्कन्ध-विनिमय केन्द्रों के गठन में सुधार:
‘सेबी’ ने स्कन्ध विनिमय केन्द्रों की शासकीय समिति के गठन के सम्बन्ध में मार्गदर्शक नियम घोषित किये है । नियमानुसार शासकीय समिति में पाँच चुने हुए सदस्य, तीन सरकारी या ‘सेबी’ द्वारा नामांकित प्रतिनिधि, अधिकतम तीन जनता के नामांकित प्रतिनिधि तथा कार्यकारी निदेशक को मिलाकर कुल ग्यारह सदस्य होने चाहिए । इस प्रकार प्रशासकीय समिति में सभी केन्द्रों में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो सकेगा ।
3. परामर्शदात्री समिति का गठन:
इस समिति का गठन दोनों प्रकार के बाजारों-प्राथमिक एवं सहायक के लिए किया गया है । इसका गठन दोनों ही प्रकार के बाजारों में निवेशकों के साथ विचार विमर्श करने तथा उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए किया गया है ।
4. शोध एवं प्रकाशन प्रारम्भ:
‘सेबी’ ने वित्तीय क्षेत्र में नवाचार, बाजार में दक्षता लाने, पेशेवर प्रवृत्तियों का विकास करने तथा प्रतिभूतियों के श्रेष्ठ प्रबन्ध के लिए शोध करवाना तथा इनके निष्कर्षों का प्रकाशन करना प्रारम्भ कर दिया है ।
5. विदेशी संस्थागत निवेशकों का पंजीयन:
‘सेबी’ ने विदेशी सम्भागत निवेशकी, जैसे- पेन्शन फण्ड, पारस्परिक निधियों, प्रन्यास, विनियोग प्रबन्ध कम्पनियो आदि का पंजीयन करना शुरू का दिया है ‘सेबी’ इन विदेशी संस्थागत निवेशकों के बारे में पंजीयन के माध्यम से महत्वपूर्ण जानकारी रखता है । ऐसी विदेशी संस्थाये भारतीय स्कन्ध विनिमय केन्द्रों में का क्रय-विक्रय कर सकती है । इससे प्रतिभूति बाजार में खुलापन आ रहा है तथा वैश्वीकग्ण की प्रवृत्तियाँ विकसित हो रही है ।
6. पोर्टफोलियो (प्रतिभूति) प्रबन्धकों का पंजीयन:
‘पोर्टफोलियो’ का आशय किसी व्यक्ति द्वारा ‘धारित प्रतिभूतियो’ से है । आजकल प्रतिभूति बाजार में पोर्टफोलियो प्रबन्धकों का महत्व बढ़ रहा है । पोर्टफोलियो प्रबन्धक किसी व्यक्ति या संस्था की प्रतिभूतियो का प्रबन्ध करता है, उसके कोषों का विनियोजन करता है तथा उन्हें विनियोग परामर्श प्रदान करता है ।
‘सेबी’ ने पोर्टफोलियो प्रबन्धकों का पंजीयन अनिवार्य कर दिया है । इसके लिए योग्यतायें, वित्तीय साधन तथा अन्य आधारभूत साधन तथा अन्य आधारभूत साधन संबंध मानदण्ड भी निर्धारित किये हैं ।
7. दलालों एवं उपदलालों का पंजीयन:
सभी दलालों एवं उप-दलालों का पंजीयन अब ‘सेबी’ द्वारा अनिवार्य कर दिया है । इससे शेयर बाज़ारों तथा स्कन्ध विनिमय केन्द्रों में कार्य करने वाले व्यक्तियों पर पभावी नियन्त्रण रखा जा सकेगा । इसके पंजीयन के लिये ‘सेबी’ ने योग्यतायें, शुल्क, वित्तीय व आधारभूत साधन की आवश्यकतायें भी निर्धारित की है ।
8. स्कन्ध विनिमय केन्द्रों की कार्यप्रणाली में सुधार:
इस दिशा में ‘सेबी’ ने अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य किया गया है । ‘सेब’ के प्रयासों के परिणामस्वरूप अब प्रायः सभी स्कन्ध विनिमय केन्द्रों में नकद-समूह के सौदों का विनिमय में केन्द्रों की दैनिक न्यूनतम कार्य अवधि को ढाई घाटे से बढ़ाकर तीन घण्टे कर दिया गया है ।
9. स्कन्ध विनिमय केन्द्रों का निरीक्षण:
‘सेबी’ ने स्कम विनिमय केन्द्रों के निरीक्षण कार्य को भी अपने हाथ में लिया है । निरीक्षण में अनेक प्रकार के सुधार हुए है तथा स्कन्ध विनिमय केन्द्रों पर एक सीधा अंकुश लगा है । इससे स्कन्ध विनिमय केन्द्रों की कार्यप्रणाली का लगातार नियमन होता है ।

goods and services tax notes for one day examination by Swami Sharan

Full form of GST  Goods and services tax  भारत में जीएसटी कब लागू हुआ  1 जुलाई 2017 को  जम्मू और कश्मीर में जीएसटी की शुरुआत हुई  8 जुलाई 20...