Tuesday, December 24, 2019

भारत के नागरिकों के मौलिक कर्तव्य by Swami Sharan

भारत के नागरिक होने  के नाते हमारे देश के प्रति कुछ कर्तव्य होते है। आईए जानते हैं।  
                         


     समाज उन लोगों को हमेशा सम्मान देता है जो अपने अधिकारों और कर्तव्यों का सही तरीके से निर्वहन करते है | अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू है – दोनों मूल्यवान धरोहर है | किसी भी एक के अभाव में दूसरा नहीं चल सकता | इनका सम्बन्ध अधिक गहरा है |

कुछ व्यक्ति सोचते हैं कि मानव सभ्य और शिक्षित हो गया है, उसपर किसी भी प्रकार के नियम का बंधन नहीं होना चाहिए | वह स्वतंत्र रूप से जो भी करे, उसे करने देना चाहिए | लेकिन व्यक्ति को ये अधिकार दे दिया जाए तो चारों तरफ वन्य – जीव जैसी अव्यवस्था आ जाएगी | इसलिए मूल अधिकारों के उपान्तरण की शक्ति संसद में निहित की गयी है कि वह संशोधन करके मूल अधिकारों को निलंबित कर यह तय कर सकती है कि किस सीमा तक व्यक्तियों को मूल अधिकार प्राप्त होंगे |



दरअसल मानव में सुप्रवृत्तियाँ और कुप्रवृत्तियाँ दोनों ही होती है | स्वभावनुसार सभ्य तभी रहता है जब तक वह अपनी सुप्रवृत्तियों की आज्ञा के अनुसार कार्य करता है |
अत: अधिकार की इच्छा या चेष्टा से पूर्व कर्तव्य का पालन आवश्यक है | दूसरों का कर्तव्य हमारा अधिकार और हमारा कर्तव्य दूसरों का अधिकार | यह वाक्य स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास है |
सीधा सा मतलब है जब तक हम हमारे कर्त्तव्यों का पालन नहीं करेगें तो दूसरों को उनका अधिकार नहीं मिल पाएगा जबकि दूसरे लोग अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करेगें तो हमें हमारे अधिकार नहीं मिल सकेगे | जैसे हम अपने अधिकारों (दूसरों के कर्त्तव्यों) के बारे में पूर्ण रूप से सर्तक रहते है वैसे ही दूसरे अपने अधिकारों (हमारे कर्त्तव्यों) के प्रति पूर्ण रूप से सतर्क रहते है |
  वास्तव में कर्त्तव्य पालन से ही अधिकारों का जन्म होता है | इसलिए गाँधी जी का उपदेश था कि जो अपने कर्त्तव्यों का पालन करता रहता है, अधिकार उसे स्वयं प्राप्त हो जाते है | आज हम जिन कर्तव्यों के पालन की बात कर रहें हैं, प्राचीन काल से ही मनुष्य को उन कर्त्तव्यों का पालन करने की शिक्षा दी जाती रही है |
महाभारत के समय कौरवों व पाण्डवों की विशाल सेनाएं आमने सामने डटी हुई थी, किन्तु सहसा अर्जुन अपने कर्त्तव्य से विमुख होने लगा | उस समय भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उसके कर्त्तव्य का बोध कराया – 
कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
मा कर्मफल हेतुर्भुमा ते संगोस्त्व कर्मणि |
वास्तव में मनुष्य की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वह अपने अधिकारों के प्रति अत्यधिक सजग रहता है परन्तु कर्तव्यों के प्रति उदासीन |
हर देश के नागरिक के कुछ अधिकार होते है जिनकी मदद से वह अपनी इच्छानुसार जीता है | इन्हीं अधिकारों की भांति व्यक्ति के कुछ कर्तव्य भी निश्चित किए गये है।

भारत के संविधान में भी कुछ मूल्यवान अधिकार और मूल कर्त्तव्य निर्धारित है | जिनमें अपने नागरिकों के प्रति राज्य के दायित्व और राज्य के प्रति नागरिकों के कर्तव्य का वर्णन किया गया है | ये मूल कर्तव्य पहले से संविधान में नहीं थे | इसे बाद में संशोधन द्वारा जोड़ा गया | इन कर्त्तव्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है :

मूल अथवा मौलिक कर्तव्य एवं उनकी संख्या

संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 – इसके द्वारा भाग 4 –क तथा अनुच्छेद 51 –क जोड़कर नागरिकों के 10 मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया गया |
–> हर नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान तथा उसके आदर्शों संस्थाओं का पालन करें और राष्ट्र ध्वज व राष्ट्रगान के प्रति सम्मानभाव रखें |
    
   –> स्वंतत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्रदय में संजोए रखे और उनका पालन करें |
–> भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें |
–> स्वराष्ट्र की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहें |
–> देश में राज्य, भाषा, लिंग, वर्ण अथवा जाति के नाम पर कलुषित वातावरण उत्पन्न नहीं करें |
–> भारतीय संस्कृति की सदैव रक्षा और आदर करें  |
–> प्राकृतिक पर्यावरण वन, नदी, झील, वन्य-प्राणी आदि को संरक्षित और सुरक्षित करें |
–> वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का लगातार विकास करें |
–> हिंसा से दूर रहें और सार्वजनिक सम्पत्ति की सुरक्षा करें |
–> राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत तथा सामूहिक प्रयास के लिए तत्पर रहें |


–> 86वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा संविधान में 11 मूल कर्तव्य और जोड़ा गया, जिसके अनुसार जो माता – पिता या संरक्षक हैं, 6 वर्ष से 14 वर्ष के मध्य आयु के अपने बच्चों या यथास्थिति अपने पाल्य को शिक्षा का अवसर प्रदान करें |
हमारे देश के नागरिक के उपयुक्त मौलिक कर्तव्य बहुत सुस्पष्ट तथा समीचीन है | इसमें कोई ऐसी बात नहीं है जिससे किसी की भावना को ठेस पहुँचने की आशंका पाई जाती है | हमारे यहां हर देशभक्त व ईमानदार नागरिक इन कर्त्तव्यों का पालन वैसे भी करता है |

      
     इन मूल कर्तव्यों के अलावा भी हमारे कुछ कर्त्तव्य एवं जिम्मेदारी ऐसे है, जिनका सम्बन्ध देश की उन्नति, देश के प्रति नागरिकों की प्रतिबद्धता, नागरिक चैतन्यता और विवेकशीलता से है | इसका संक्षिप्त उल्लेख नीचे किया जा रहा है :
  


        

हमारे मौलिक कर्तव्य एवं जिम्मेदारी


      
१ – हर कीमत पर शांति – सुरक्षा बनाये रखने, अपराधों की रोकथाम, अपराधियों को पकड़वाने में सरकार की पूरी सहायता करना |
२ – निष्ठाओं का समुचित क्रम ही कर्त्तव्यों का बोध है | इसका अर्थ यही है कि हम राष्ट्र के प्रति अपने कर्त्तव्यों को सर्वाधिक प्राथमिकता दे, उसके बाद समाज, समुदाय समूह, कुटुंब और परिवार के प्रति कर्त्तव्यों को | राष्ट्र की रक्षा के लिए परिवार, कुटुंब, समूह, समुदाय सब कुछ बलिदान करने का कर्त्तव्य |
३. मतदान को मूल्यवान कर्त्तव्य मानना | मतदान जरुर करना चाहिए और अच्छे नागरिक को बिना लोभ, मोह, दबाव के, आत्मा की आवाज को सुनकर अपना मत देना चाहिए | मताधिकार का प्रयोग करते समय जाति, धर्म, वर्ग, अथवा अन्य संबंधो को प्राथमिकता दिए बिना सुपात्र उम्मीदवार को ही अपना मत प्रदान करना चाहिए |
४. राष्ट्र और समाज की समस्याओं अथवा महत्वपूर्ण मुद्दों के सम्बन्ध में पूरी रूचि रखना | इसके प्रति उदासीनता कर्त्तव्य विमुखता है |
५.जो भी काम आप कर रहे हो – आप विद्यार्थी , कर्मचारी, अधिकारी, व्यापारी, उद्योगपति, शिक्षक, दुकानदार आदि कोई भी हो – उसे ईमानदारी, पूरी लगन और निष्ठा से करना चाहिए | इनमे आलस्य करना या इनसे जी चुराना अच्छे नागरिक का लक्षण नही हो सकता |

६. कर वंचन अच्छे नागरिक के लिए लज्जा की बात है | करों का भुगतान समय पर करना चाहिए |

    सही अर्थों में सच्चा नागरिक कहे जाने योग्य वही होता है जो अधिकार और कर्तव्य के बीच संतुलन बनाकर उक्त कर्त्तव्यों का पालन स्वेच्छा तथा दायित्वबोध के साथ करता है |।     

      




   भारत के नागरिकों का मौलिक कर्तव्य कुछ इस प्रकार है:
1. सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर संविधान के 42वें संशोधन (1976 ई)० के द्वारा मौलिक कर्तव्य को संविधान में जोड़ा गया. इसे रूस के संविधान से लिया गया है.
2. इसे भाग 4(क) में अनुच्छेद 51(क) के तहत रखा गया.

मौलिक कर्तव्य की संख्या 11 है, जो इस प्रकार है:
1. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें.
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करनेवाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे.
3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे.
4. देश की रक्षा करे.
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे.
6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे.
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे.
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे.
9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे.
10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे.
11. माता-पिता या संरक्षक द्वार 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना (86वां संशोधन).************

1 comment:

  1. In this fashion my colleague Wesley Virgin's adventure starts with this shocking and controversial video.

    Wesley was in the army-and soon after leaving-he revealed hidden, "mind control" secrets that the government and others used to obtain whatever they want.

    As it turns out, these are the same tactics lots of famous people (notably those who "come out of nowhere") and elite business people used to become rich and successful.

    You probably know that you only use 10% of your brain.

    That's really because the majority of your BRAINPOWER is UNCONSCIOUS.

    Perhaps that expression has even taken place INSIDE your own brain... as it did in my good friend Wesley Virgin's brain around seven years back, while driving a non-registered, beat-up bucket of a car without a license and in his bank account.

    "I'm so frustrated with living paycheck to paycheck! Why can't I turn myself successful?"

    You've been a part of those those conversations, ain't it right?

    Your success story is going to happen. Go and take a leap of faith in YOURSELF.

    WATCH WESLEY SPEAK NOW

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