Saturday, February 16, 2019

Capital Budgeting in Hindi for M.COM, M.B.A. by Swami Sharan



Meaning of capital Budgeting


पूंजी बजटन का आशय के विभिन्न स्त्रोतों से पूंजी प्राप्त करने केलिए बजट बनाने से नहीं है, बल्कि यह एक विनियोजन निर्णय है। इसलिए कि पूंजी बजटन पूंजी के दीर्घकालीन नियोजन से सम्बन्धित एक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत पूंजीगत विनियोग की भावी लाभोत्पादकता का अध्ययन करना, उसकी पूंजी लागत की गणना करके अर्जन और लागत की तुलना करना तथा अन्त में उस विनियोग के करने अथवा न करने के बारे में अन्तिम निर्णय लेना सम्मिलित है। इस प्रकार पूंजी बजटन से आशय पूंजी व्यय विकल्पों के उद्भव, मूल्यांकन, चयन तथा अनुवर्तन की सम्पूर्ण प्रक्रिया से है। प्रो. इन्द्र मोहन पाण्डे के अनुसार, पूंजी बजटन निर्णय भावी लाभों के अपेक्षित प्रवाहों की प्रत्याशा में संस्था द्वारा अपने चालू कोषों को दीर्घकालीन क्रियाओं में मुआवजा पवूर् क विनियाेि जत करने के निर्णय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। आर.एमलिन्च के शब्दों में, ‘‘पूंजी बजटन में संस्था की दीर्घकालीन लाभप्रदता (विनियोग पर प्रत्याय) को अधिकतम करने के उद्देश्य से पूंजी के विस्तार का नियोजन सम्मिलित है।








Definition of Capital budgeting

पूंजी बजट की मूल बातें पूंजी बजट को एक वर्ष से अधिक अवधि की नकदी प्रवाह के साथ परिसंपत्तियों पर परियोजनाओं के लिए योजना बनाने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया गया है। - चूंकि पूंजी बजट के माध्यम से अनुमोदित परियोजनाएं लंबी अवधि हैं, फर्म परियोजना से बंधा हुआ है और उस अवधि के दौरान अपनी कुछ लचीलेपन को खो देता है।



पूंजी बजटन के उद्देश्य अथवा महत्व:-



1.अंशधारियों की सम्पदा अधिकतम करना :

 वित्तीय प्रबन्ध का मूल उद्देश्य अंशधारियों की सम्पदा को अधिकतम करना है। इसलिए पूंजी बजटन का उद्देश्य उन दीर्घकालीन विनियोजन परियोजनाओ का चयन करना है जो दीर्घकाल में अंशधारियों की सम्पादा को अधिकतम कर सके। पूंजी बजटन निर्णय अंशधारियों एवं संस्था के हितों को संरक्षण देते है क्योंकि ये स्थायी सम्पतियों में अति विनियोग या न्यून विनियोग का परिहार करते है।

2.प्रस्तावित पूंजी व्ययों का मूल्यांकन :
 इस बजट की सहायता से बजट अवधि में संस्था द्वारा विभिन्न सम्पतियों के लिए किये जाने वाले व्ययों का मूल्यांकन किया जाता है। ऐसा करने से प्रत्येक व्यय की सार्थकता आंकी जा सकती है।

3.प्राथमिकता निर्धारित करना :
प्राथमिकता निर्धारित करने का आशय विभिन्न परियोजनाओं को उनकी लाभप्रदता के क्रम में विन्यासित करना है। पूंजी बजट द्वारा ऐसी विभिन्न पूंजी-परियोजनाओं में प्राथमिकता निर्धारित की जाती है। तत्पश्चात् प्रबन्ध इनमें सबसे अधिक लाभप्रद योजना का चुनाव कर लेता है।

4.लागत नियंत्रण :
 पूंजी व्यय कितना किया जाये और कब किया जाये, यह निर्धारित करने से पूर्व लागत-लाभ तुलना की जाती है। व्यवसाय का यह निरन्तर प्रयास रहता है कि जितनी लागत निर्धारित की गर्इ है उससे अधिक न हो। यदि कहीं विचरण होते है तो सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है तथा उत्तरदायित्व एवं जवाबदेही निश्चित कर दी जाती है। इस प्रकार लागत पर स्वत: ही नियंत्रण हो जाता है।

5.पूंजी व्ययों पर नियंत्रण :
अन्य व्यावसायिक बजटों की भांति पूंजी बजट का भी एक प्रमुख उद्देश्य संस्था के विभिन्न विभागों द्वारा कियेजाने वाले पूंजी व्ययों को नियत्रिंत करना है। इसमें वास्तविक व्ययों की पूर्व-निर्धारित व्ययों से तुना करके इन पर प्रभावकारी नियंत्रण रखा जा सकता है।

6.पूंजी व्ययों के लिये वित्त की व्यवस्था :
पूंजी बजट बनाने से विभिन्न सम्पतियों पर भविष्य में किये जाने वाले व्ययों की पूर्व जानकारी मिल जाती है जिससे संस्था के प्रबन्धक समय पर उस राशि के लिए उचित व्यवस्था कर सकते है।

7.भूतकालीन निर्णयों का विश्लेषण :
पूंजी बजट की सहायता से गत अवधि में किये गये व्ययों का विश्लेषण किया जाता है जिससे यह जाना जा सकता है कि वे निर्णय किस सीमा तक सही थे।
स्थायी सम्पतियों का मूल्यांकन : बजट अवधि के अंत में बनाये जाने वाले चिठ्ठे के लिए स्थायी सम्पतियों के मूल्यांकन समंक पूंजी बजट से उपलब्ध हो जाते है। इससे प्रक्षेपित चिठ्ठा आसानी से बनाया जा सकता है।

8.पूंजी संरचना नियोजन :
किसी परियोजना द्वारा अर्जित अधिकर पूंजी लागत पर निर्भर करता है जो कि पूंजी लागत संस्था की पूंजी संरचना पर निर्भर है। इस प्रकार पूंजी संरचना नियोजन भी स्वत: ही हो जाता है।








¥¥ पूंजी बजटन की प्रकृति अथवा विशेषताए -


(1) दीर्घकालीन प्रभाव -
सम्भवत: पूंजी व्यय निर्णयों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इनका संस्था कीभावी लाभदायकता और लागत संरचना पर प्रभाव है। ये संस्था की वृद्धि दर एवं दिशा को प्रभावित करते है। एक उचित निर्णय विस्मयकारी प्रत्यय दे सकता है; जबकि गलत विनियोग निर्णय संस्था के अस्तित्व को ही खतरे में डाल सकता है। इसीलिए यह कहा जाता है कि पूंजी व्यय निर्णय संस्था के भाग्य को तय करते है।
(2) जोखिम से सम्बंद्ध -
कोषों के दीर्घकालीन विनियोग में अनेक प्रकार की जोखिमें निहित होतीहै। एक विनियोग प्रस्ताव के फलस्वरूप संस्था के औसत लाभों में तो वृद्धि होती है किन्तु साथ ही उसकी अर्जनों बार-बार उच्चावचन भी होते है। ऐसा निरन्तर शोध एवं तकनीकी विकास के कारण ग्राहकों की रूचि एवं फैशन में परिवर्तन की वजह से होता है। परियोजना की अवधि जितनीदीर्घ होगी, जोखिम एवं अनिश्चितता उतनी ही अधिक होगी।
(3) कोषों का वृहत आकार -
पूंजी व्यय निर्णयों में स्थायी सम्पतियों की अवाप्ति अथवा कुछ विशाल परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु अधिक कोषों की आवश्यकता होती है। यह सर्वविदित है कि अधिकांश संस्थाएं ऐसे अधिक कोष उपलब्ध नहीं करा सकती क्योंकि उनके पूंजीसंसाधन सीमित होते है। इसलिए यह आवश्यक है कि वृहत्पूंजी कोषों का विनियोग पूर्ण मूल्यांकन के बाद ही लाभप्रद परियोजनाओं हमें करना चाहिए।
(4) अप्रत्यावर्ती निर्णय -
पूंजी बजटन निर्णय अप्रत्यावर्ती होते है तथा विनियोजित राशि वापस वसूल नहीं की जा सकती। यह इस कारण है कि पुरानी पूंजी सम्पतियों के लिए न तो कोर्इ बाजार होता है तथा न ही इन सम्पतियों को अन्य किसी लाभदायक विकल्प में परिवर्तित किया जा सकता हैं। केवल एक ही उपाय है कि इनको गहरी हानि पर निस्तारण किया जाये। इसलिए ऐसे निर्णय परियोजना की बारीकी से विस्तृत जांच एवं मूल्यांकन करने के पश्चात् ही लिये जाने चाहिए।
(5) सर्वाधिक कठिन निर्णय -
पूंजी बजटन निर्णय लेना एक दुष्कर कार्य है, क्योंकि इनका मूल्यांकन संस्था की भावी घटनाओं एवं क्रियाओं की अनिश्चितता पर निर्भर करता है। इसी तरह किसी विशेष विनियोग निर्णय के भावी लाभों एवं लागतों का मुद्रा एवं परिमाण में सही अनुमान लगाना भी कठिन होता है, क्योंकि ये लाभ एवं लागतें आर्थिक, राजनीतिक तथा तकनीकी कारणों से प्रभावित होते है। अत: ये निर्णय लेना उतना आसान नहीं है।
(6) संस्था की प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति पर प्रभाव -
पूंजी बजटन निर्णय संस्था के भावी लाभों एवं लागतों का निर्धारण करते है जो कि अन्तत: संस्था की प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति को प्रभवित करते है। उदाहरणार्थ, यदि एक संस्था अपने संयंत्र का आधुनिकरण करने के निर्णय में देरी करती है, अथवा सही तरीके से नही लेती है तो वह प्रतिस्पर्धात्मकता खो देगी। इसलिए पूंजी बजटन निर्णय संस्था की प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता एवं शक्ति को प्रभावित करते है।



(7) लागत संरचना पर प्रभाव -
पूंजी बजटन निर्णयों के परिणामस्वरूप एक संस्था को एक बहुत बड़ी राशि स्थायी व्ययों यथा पर्यवेक्षण व्यय, बीमा, भवन किराया, पूंजी पर ब्याज आदि के रूप में भी वाहन करनी पड़ती है। यदि परियोजना भविष्य में असफल हो जाती है अथवा अपेक्षित लाभों से कम लाभ अर्जित करती है, तो संस्था को इन स्थायी व्ययों का भार वहन करना होगा जो कि अन्तत: संस्था की लाभदायकता को प्रभावित करेगी।
अत्यधिक सम्भावित आय
तुलनात्मक रूप से उच्च जोखिम मात्रा
प्रारम्भिक विनियोग एवं प्रतयाशित लाभों के बीच तुलनात्मक रूप से दीर्घकालीन अवधि।





CAPITAL BUDGETING TECHNIQUES / METHODS

कैपिटल बजटिंग के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं। पारंपरिक तरीकों या गैर छूट विधियों में शामिल हैं: वापसी की अवधि और रिटर्न विधि की लेखा दर। रियायती नकदी प्रवाह विधि में एनपीवी विधि, लाभप्रदता सूचकांक विधि और आईआरआर शामिल हैं।

पेबैक अवधि विधि:

जैसा कि नाम से पता चलता है, यह विधि उस अवधि को संदर्भित करती है जिसमें प्रस्ताव किए गए प्रारंभिक निवेश को पुनर्प्राप्त करने के लिए नकदी उत्पन्न करेगा। यह शुद्ध रूप से नकदी प्रवाह, परियोजना के आर्थिक जीवन और परियोजना में किए गए निवेश पर जोर देता है, जिसमें धन के समय पर ध्यान नहीं दिया जाता है। इस पद्धति के माध्यम से एक प्रस्ताव का चयन परियोजना की आय क्षमता पर आधारित है। सरल गणना के साथ, परियोजना का चयन या अस्वीकृति हो सकती है, ऐसे परिणामों के साथ जो जोखिमों को कम करने में मदद करेंगे। हालांकि, जैसा कि विधि अंगूठे के नियम पर आधारित है, यह पैसे के समय मूल्य के महत्व और लाभ के प्रासंगिक आयामों पर विचार नहीं करता है।
Payback period = Cash outlay (investment) / Annual cash inflow


रिटर्न विधि की विधि (ARR):

यह विधि पेबैक अवधि विधि के नुकसान को दूर करने में मदद करती है। किसी विशेष परियोजना में निवेश की कमाई के प्रतिशत के रूप में वापसी की दर व्यक्त की जाती है। यह मानदंड पर काम करता है कि प्रबंधन द्वारा स्थापित न्यूनतम दर से अधिक एआरआर वाली किसी भी परियोजना पर विचार किया जाएगा और पूर्व निर्धारित दर से नीचे वालों को अस्वीकार कर दिया जाएगा।

यह विधि परियोजना के संपूर्ण आर्थिक जीवन को तुलना का एक बेहतर साधन प्रदान करती है। यह शुद्ध कमाई की अवधारणा के माध्यम से परियोजनाओं की अपेक्षित लाभप्रदता के मुआवजे को भी सुनिश्चित करता है। हालाँकि, यह विधि पैसे के समय मूल्य को भी नजरअंदाज करती है और परियोजनाओं की लंबाई पर विचार नहीं करती है। साथ ही यह शेयरों के बाजार मूल्य को अधिकतम करने के फर्म के उद्देश्य के अनुरूप नहीं है।
ARR= Average income/Average Investment


Discount cash flow Methods
रियायती नकदी प्रवाह विधि:

रियायती नकदी प्रवाह तकनीक एक परिसंपत्ति के जीवन के माध्यम से नकदी प्रवाह और बहिर्वाह की गणना करती है। इसके बाद डिस्काउंटिंग फैक्टर के माध्यम से छूट दी जाती है। रियायती नकदी प्रवाह और बहिर्वाह की तुलना तब की जाती है। यह तकनीक ब्याज कारक और पेबैक अवधि के बाद वापसी को ध्यान में रखती है।

शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPV) विधि:

यह पूंजी निवेश प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिए व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधियों में से एक है। इस तकनीक में अलग-अलग समय पर अपेक्षित नकदी प्रवाह को एक विशेष दर पर छूट दी जाती है। मूल नकदी के मौजूदा मूल्यों की तुलना मूल निवेश से की जाती है। यदि उनके बीच का अंतर सकारात्मक है (+) तो इसे स्वीकार किया जाता है या अन्यथा अस्वीकार कर दिया जाता है। यह विधि पैसे के समय के मूल्य पर विचार करती है और मालिकों के लिए मुनाफे को अधिकतम करने के उद्देश्य के अनुरूप है। हालाँकि, पूंजी की लागत की अवधारणा को समझना कोई आसान काम नहीं है।
NPV = PVB – PVC

where,

PVB = Present value of benefits

PVC = Present value of Costs




रिटर्न की आंतरिक दर (IRR):

यह उस दर के रूप में परिभाषित किया गया है जिस पर निवेश का शुद्ध वर्तमान मूल्य शून्य है। रियायती नकदी प्रवाह रियायती नकदी बहिर्वाह के बराबर है। यह विधि पैसे का समय मूल्य भी मानती है। यह ब्याज की दर तक पहुंचने की कोशिश करता है, जिस पर परियोजना में निवेश किए गए धन को नकदी प्रवाह से चुकाया जा सकता है। हालाँकि, IRR की गणना एक थकाऊ काम है।

इसे आंतरिक दर कहा जाता है क्योंकि यह पूरी तरह से परियोजना से जुड़े परिव्यय और आय पर निर्भर करता है और निवेश के बाहर निर्धारित किसी भी दर पर नहीं।


लाभप्रदता सूचकांक (PI):

यह भविष्य के नकद लाभों के वर्तमान मूल्य का अनुपात है, निवेश की प्रारंभिक नकदी बहिर्वाह की वापसी की आवश्यक दर पर। यह सकल या शुद्ध हो सकता है, शुद्ध बस सकल शून्य से एक हो सकता है। लाभप्रदता सूचकांक (पीआई) या लाभ लागत (बीसी) अनुपात की गणना करने का सूत्र इस प्रकार है।
PI = PV cash inflows/Initial cash outlay A,

PI = NPV (benefits) / NPV (Costs)

All projects with PI > 1.0 is accepted

पीआई> 1.0 के साथ सभी प्रोजेक्ट स्वीकार किए जाते हैं




IMPORTANCE OF CAPITAL BUDGETING
Capital budgeting ke महत्व



1) दीर्घकालिक निवेश में जोखिम शामिल होते हैं: पूंजीगत व्यय दीर्घकालिक निवेश होते हैं जिनमें अधिक वित्तीय जोखिम शामिल होते हैं। इसीलिए पूंजी बजटिंग के माध्यम से उचित योजना की आवश्यकता है।



2) भारी निवेश और अपरिवर्तनीय: जैसा कि निवेश बहुत बड़ा है लेकिन फंड सीमित हैं, पूंजीगत व्यय के माध्यम से उचित योजना पूर्व-आवश्यकता है। इसके अलावा, पूंजी निवेश के फैसले प्रकृति में अपरिवर्तनीय हैं, यानी एक बार जब कोई स्थायी संपत्ति खरीदी जाती है तो उसका नुकसान उठाना पड़ेगा।




3) लंबे समय तक व्यवसाय में चलाएं: पूंजीगत बजट लागत को कम करता है और साथ ही कंपनी की लाभप्रदता में बदलाव लाता है। यह निवेश से अधिक या कम से बचने में मदद करता है। परियोजनाओं की उचित योजना और विश्लेषण लंबे समय में मदद करता है।




पूंजीगत बजट का उदाहरण:

छोटे पैमाने पर विस्तार के लिए पूंजीगत बजट में तीन चरण शामिल होते हैं: निवेश की लागत को रिकॉर्ड करना, निवेश के नकदी प्रवाह का अनुमान लगाना और अनुमानित आय की तुलना मुद्रास्फीति दरों और निवेश के समय मूल्य के साथ करना।

उदाहरण के लिए, उपकरण जो $ 15,000 का खर्च करते हैं और 3 वर्षों में निवेश पर "वापस भुगतान" करने के लिए $ 5,000 वार्षिक रिटर्न उत्पन्न करते हैं। हालांकि, अगर अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि मुद्रास्फीति सालाना 30 प्रतिशत बढ़ सकती है, तो पहले वर्ष के अंत में अनुमानित रिटर्न मूल्य ($ 20,000) वास्तव में $ 15,385 है जब आप मुद्रास्फीति के लिए खाते ($ 20,000, $ 1.3,315 से विभाजित के बराबर है)। निवेश पहले वर्ष के बाद वास्तविक मूल्य में केवल $ 385 उत्पन्न करता है।



निष्कर्ष:

चार्ल्स टी। हिरोग्रीन की परिभाषा के अनुसार, "पूंजीगत बजट प्रस्तावित पूंजीगत व्यय को बनाने और वित्तपोषण के लिए एक दीर्घकालिक योजना है।"

कोई यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि पूंजी बजट भविष्य को निर्धारित करने का प्रयास है।
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