Tuesday, December 24, 2019

भारत के नागरिकों के मौलिक कर्तव्य by Swami Sharan

भारत के नागरिक होने  के नाते हमारे देश के प्रति कुछ कर्तव्य होते है। आईए जानते हैं।  
                         


     समाज उन लोगों को हमेशा सम्मान देता है जो अपने अधिकारों और कर्तव्यों का सही तरीके से निर्वहन करते है | अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू है – दोनों मूल्यवान धरोहर है | किसी भी एक के अभाव में दूसरा नहीं चल सकता | इनका सम्बन्ध अधिक गहरा है |

कुछ व्यक्ति सोचते हैं कि मानव सभ्य और शिक्षित हो गया है, उसपर किसी भी प्रकार के नियम का बंधन नहीं होना चाहिए | वह स्वतंत्र रूप से जो भी करे, उसे करने देना चाहिए | लेकिन व्यक्ति को ये अधिकार दे दिया जाए तो चारों तरफ वन्य – जीव जैसी अव्यवस्था आ जाएगी | इसलिए मूल अधिकारों के उपान्तरण की शक्ति संसद में निहित की गयी है कि वह संशोधन करके मूल अधिकारों को निलंबित कर यह तय कर सकती है कि किस सीमा तक व्यक्तियों को मूल अधिकार प्राप्त होंगे |



दरअसल मानव में सुप्रवृत्तियाँ और कुप्रवृत्तियाँ दोनों ही होती है | स्वभावनुसार सभ्य तभी रहता है जब तक वह अपनी सुप्रवृत्तियों की आज्ञा के अनुसार कार्य करता है |
अत: अधिकार की इच्छा या चेष्टा से पूर्व कर्तव्य का पालन आवश्यक है | दूसरों का कर्तव्य हमारा अधिकार और हमारा कर्तव्य दूसरों का अधिकार | यह वाक्य स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास है |
सीधा सा मतलब है जब तक हम हमारे कर्त्तव्यों का पालन नहीं करेगें तो दूसरों को उनका अधिकार नहीं मिल पाएगा जबकि दूसरे लोग अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करेगें तो हमें हमारे अधिकार नहीं मिल सकेगे | जैसे हम अपने अधिकारों (दूसरों के कर्त्तव्यों) के बारे में पूर्ण रूप से सर्तक रहते है वैसे ही दूसरे अपने अधिकारों (हमारे कर्त्तव्यों) के प्रति पूर्ण रूप से सतर्क रहते है |
  वास्तव में कर्त्तव्य पालन से ही अधिकारों का जन्म होता है | इसलिए गाँधी जी का उपदेश था कि जो अपने कर्त्तव्यों का पालन करता रहता है, अधिकार उसे स्वयं प्राप्त हो जाते है | आज हम जिन कर्तव्यों के पालन की बात कर रहें हैं, प्राचीन काल से ही मनुष्य को उन कर्त्तव्यों का पालन करने की शिक्षा दी जाती रही है |
महाभारत के समय कौरवों व पाण्डवों की विशाल सेनाएं आमने सामने डटी हुई थी, किन्तु सहसा अर्जुन अपने कर्त्तव्य से विमुख होने लगा | उस समय भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उसके कर्त्तव्य का बोध कराया – 
कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
मा कर्मफल हेतुर्भुमा ते संगोस्त्व कर्मणि |
वास्तव में मनुष्य की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वह अपने अधिकारों के प्रति अत्यधिक सजग रहता है परन्तु कर्तव्यों के प्रति उदासीन |
हर देश के नागरिक के कुछ अधिकार होते है जिनकी मदद से वह अपनी इच्छानुसार जीता है | इन्हीं अधिकारों की भांति व्यक्ति के कुछ कर्तव्य भी निश्चित किए गये है।

भारत के संविधान में भी कुछ मूल्यवान अधिकार और मूल कर्त्तव्य निर्धारित है | जिनमें अपने नागरिकों के प्रति राज्य के दायित्व और राज्य के प्रति नागरिकों के कर्तव्य का वर्णन किया गया है | ये मूल कर्तव्य पहले से संविधान में नहीं थे | इसे बाद में संशोधन द्वारा जोड़ा गया | इन कर्त्तव्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है :

मूल अथवा मौलिक कर्तव्य एवं उनकी संख्या

संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 – इसके द्वारा भाग 4 –क तथा अनुच्छेद 51 –क जोड़कर नागरिकों के 10 मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया गया |
–> हर नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान तथा उसके आदर्शों संस्थाओं का पालन करें और राष्ट्र ध्वज व राष्ट्रगान के प्रति सम्मानभाव रखें |
    
   –> स्वंतत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्रदय में संजोए रखे और उनका पालन करें |
–> भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें |
–> स्वराष्ट्र की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहें |
–> देश में राज्य, भाषा, लिंग, वर्ण अथवा जाति के नाम पर कलुषित वातावरण उत्पन्न नहीं करें |
–> भारतीय संस्कृति की सदैव रक्षा और आदर करें  |
–> प्राकृतिक पर्यावरण वन, नदी, झील, वन्य-प्राणी आदि को संरक्षित और सुरक्षित करें |
–> वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का लगातार विकास करें |
–> हिंसा से दूर रहें और सार्वजनिक सम्पत्ति की सुरक्षा करें |
–> राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत तथा सामूहिक प्रयास के लिए तत्पर रहें |


–> 86वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा संविधान में 11 मूल कर्तव्य और जोड़ा गया, जिसके अनुसार जो माता – पिता या संरक्षक हैं, 6 वर्ष से 14 वर्ष के मध्य आयु के अपने बच्चों या यथास्थिति अपने पाल्य को शिक्षा का अवसर प्रदान करें |
हमारे देश के नागरिक के उपयुक्त मौलिक कर्तव्य बहुत सुस्पष्ट तथा समीचीन है | इसमें कोई ऐसी बात नहीं है जिससे किसी की भावना को ठेस पहुँचने की आशंका पाई जाती है | हमारे यहां हर देशभक्त व ईमानदार नागरिक इन कर्त्तव्यों का पालन वैसे भी करता है |

      
     इन मूल कर्तव्यों के अलावा भी हमारे कुछ कर्त्तव्य एवं जिम्मेदारी ऐसे है, जिनका सम्बन्ध देश की उन्नति, देश के प्रति नागरिकों की प्रतिबद्धता, नागरिक चैतन्यता और विवेकशीलता से है | इसका संक्षिप्त उल्लेख नीचे किया जा रहा है :
  


        

हमारे मौलिक कर्तव्य एवं जिम्मेदारी


      
१ – हर कीमत पर शांति – सुरक्षा बनाये रखने, अपराधों की रोकथाम, अपराधियों को पकड़वाने में सरकार की पूरी सहायता करना |
२ – निष्ठाओं का समुचित क्रम ही कर्त्तव्यों का बोध है | इसका अर्थ यही है कि हम राष्ट्र के प्रति अपने कर्त्तव्यों को सर्वाधिक प्राथमिकता दे, उसके बाद समाज, समुदाय समूह, कुटुंब और परिवार के प्रति कर्त्तव्यों को | राष्ट्र की रक्षा के लिए परिवार, कुटुंब, समूह, समुदाय सब कुछ बलिदान करने का कर्त्तव्य |
३. मतदान को मूल्यवान कर्त्तव्य मानना | मतदान जरुर करना चाहिए और अच्छे नागरिक को बिना लोभ, मोह, दबाव के, आत्मा की आवाज को सुनकर अपना मत देना चाहिए | मताधिकार का प्रयोग करते समय जाति, धर्म, वर्ग, अथवा अन्य संबंधो को प्राथमिकता दिए बिना सुपात्र उम्मीदवार को ही अपना मत प्रदान करना चाहिए |
४. राष्ट्र और समाज की समस्याओं अथवा महत्वपूर्ण मुद्दों के सम्बन्ध में पूरी रूचि रखना | इसके प्रति उदासीनता कर्त्तव्य विमुखता है |
५.जो भी काम आप कर रहे हो – आप विद्यार्थी , कर्मचारी, अधिकारी, व्यापारी, उद्योगपति, शिक्षक, दुकानदार आदि कोई भी हो – उसे ईमानदारी, पूरी लगन और निष्ठा से करना चाहिए | इनमे आलस्य करना या इनसे जी चुराना अच्छे नागरिक का लक्षण नही हो सकता |

६. कर वंचन अच्छे नागरिक के लिए लज्जा की बात है | करों का भुगतान समय पर करना चाहिए |

    सही अर्थों में सच्चा नागरिक कहे जाने योग्य वही होता है जो अधिकार और कर्तव्य के बीच संतुलन बनाकर उक्त कर्त्तव्यों का पालन स्वेच्छा तथा दायित्वबोध के साथ करता है |।     

      




   भारत के नागरिकों का मौलिक कर्तव्य कुछ इस प्रकार है:
1. सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर संविधान के 42वें संशोधन (1976 ई)० के द्वारा मौलिक कर्तव्य को संविधान में जोड़ा गया. इसे रूस के संविधान से लिया गया है.
2. इसे भाग 4(क) में अनुच्छेद 51(क) के तहत रखा गया.

मौलिक कर्तव्य की संख्या 11 है, जो इस प्रकार है:
1. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें.
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करनेवाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे.
3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे.
4. देश की रक्षा करे.
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे.
6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे.
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे.
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे.
9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे.
10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे.
11. माता-पिता या संरक्षक द्वार 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना (86वां संशोधन).************

Level of strategy or strategic management/रणनीति के स्तर by Swami Sharan

रणनीति के तीन स्तर हैं
A. Corporate level strategy
B. Business level strategy
C. Functional level strategy



 A. Corporate level strategy
    निगम स्तरीय रणनीति।               :

        कॉर्पोरेट स्तर की रणनीतियाँ मूल रूप से आवंटन से संबंधित हैं
 फर्म के विभिन्न व्यवसायों के बीच संसाधन, प्रबंधन और
 व्यवसायों के पोर्टफोलियो का पोषण करना आदि यह विकल्प का उपयोग करने में मदद करता है
 वह दिशा जो एक संगठन अपनाता है।  कॉर्पोरेट रणनीति आमतौर पर
 तीन मुख्य श्रेणियों के भीतर फिट बैठता है- स्थिरता, विकास, और छंटनी
 रणनीति।  हम इन तीन रणनीतियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

   कॉर्पोरेट स्तर की रणनीति मुख्य रूप से निर्णय के बारे में है
 विभिन्न व्यवसायों के बीच संसाधनों के फैलाव से संबंधित है
 संगठन, व्यापार के एक सेट से संसाधनों को बदलना
 अन्य और व्यवसायों के एक पोर्टफोलियो का प्रबंधन और पोषण करना जैसे कि
 समग्र कॉर्पोरेट उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है।

    1. स्थिरता की रणनीति: -

 यह रणनीति उस फर्म द्वारा अपनाई जाती है जब वह उस पर पकड़ बनाने की कोशिश करता है
 बाजार में उनकी वर्तमान स्थिति।  यह वृद्धिशील प्रयास भी करता है
 एक या एक से अधिक परिवर्तन द्वारा इसके प्रदर्शन में सुधार
 अपने व्यवसाय के संबंध में अपने संबंधित ग्राहक समूह,
 ग्राहक फ़ंक्शन और प्रौद्योगिकियाँ व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से।
 इसका मतलब यह नहीं है कि फर्म कोई विकास नहीं करना चाहती है।  आईटी इस
 प्रयास एक ही व्यवसाय लाइन में मामूली वृद्धि पर हैं।  के लिये
 उदाहरण कोई भी कंपनी एक संस्थागत को एक विशेष सेवा प्रदान करती है
 खरीदारों को थोक खरीदार को प्रोत्साहित करके इसकी बिक्री बढ़ाने के लिए ऐसा है
 कंपनियों के बाजार में सुधार से स्थिरता की रणनीति।

2. विकास की रणनीति: -

 इस रणनीति को विस्तार रणनीति के रूप में भी जाना जाता है।  यहां ही
 विकास के लिए पर्याप्त प्रयास किए जाते हैं।  यह रणनीति होगी
 जब फर्म अपने उद्देश्यों के स्तर को एक में ऊपर की ओर बढ़ाता है
 महत्वपूर्ण वृद्धि जो इसके अतीत की तुलना में बहुत अधिक है
 उपलब्धियों।
 पिछले लक्ष्य की तुलना में उच्च लक्ष्य प्राप्त करने के लिए फर्म प्रवेश कर सकती है
 नई / नई उत्पाद लाइनों का परिचय देता है, अतिरिक्त बाजार में प्रवेश करता है
 खंड।  इसमें स्थिरता की तुलना में अधिक जोखिम और प्रयास शामिल हैं
 रणनीति।  विकास की रणनीति को दो भागों में विभाजित किया गया है
 आंतरिक वृद्धि की रणनीति और
 बाहरी विकास की रणनीति।
 आंतरिक विकास रणनीति में मुख्य रूप से विविधीकरण शामिल है
 रणनीतियों और गहनता की रणनीति।
     
        बाहरी विकास रणनीति में विलय, अधिग्रहण, विदेशी शामिल हैं
 सहयोग और संयुक्त उद्यम।


विकास रणनीतियों को अपनाने के प्रमुख उद्देश्य हैं -


 जीवन रक्षा: -
हर व्यवसाय के बढ़ने की स्वाभाविक प्रवृत्ति है।  अगर यह
 तब बाजार में नए लोग नहीं आएंगे और इसका जीवन होगा
 खतरे में रहो।  उत्तरजीविता भी चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक है
 व्यापारिक वातावरण।

 इनोवेशन: -

 इनोवेशन बिजनेस के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नया देता है
 उत्पाद, नई विधियाँ, नई योजनाएँ जिनके साथ व्यवसाय बढ़ सकता है
 वांछनीय सीमा तक।  इस व्यवसाय के साथ उच्च प्रदर्शन, उच्च हो जाता है
 परिणाम जो विकास के संकेत हैं।

 कर्मचारियों को प्रेरणा: -

 विकास रणनीति उच्चतर उत्पन्न करती है
 प्रदर्शन और यह फर्म को कर्मचारियों को प्रेरित करने में सक्षम बनाता है
 मौद्रिक और गैर-मौद्रिक प्रोत्साहन।

 ग्राहकों की संतुष्टि: -

 विकास की रणनीति फर्म को सक्षम बनाती है
 अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद प्रदान करके अधिक संतुष्टि दें
 उचित दाम।


 कॉर्पोरेट छवि: -

 कॉर्पोरेट छवि का अर्थ है अच्छी छवि बनाना
 सभी हितधारकों के दिमाग में संगठन का।  यह होगा
 केवल फर्म की विकास रणनीतियों के साथ ही संभव हो जाता है क्योंकि यह देता है
 लोगों को गुणवत्तापूर्ण सामान, निवेशक को अच्छा रिटर्न, उचित मजदूरी और
 कर्मचारियों को इसके उत्पादन की बढ़ी हुई मात्रा के साथ वेतन और
 कार्य निष्पादन का सुधार।


 पैमाने की अर्थव्यवस्था: -

 विकास की रणनीति के कारण वृद्धि होती है
 ऐसे उत्पादों की मांग, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर उत्पादन हो
 बदले में बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं को लाता है।  यह श्रम बचाने में हो सकता है
 लागत या सामग्री की लागत।


 दक्षता: -

दक्षता लागतों के प्रतिफल का अनुपात है।  के चलते
 विकास की रणनीति में नवाचार है, प्रौद्योगिकी का उन्नयन,
 कर्मचारियों और अनुसंधानों का प्रशिक्षण और विकास और
 इन सभी के विकास से उत्पादन और कटौती में सुधार होता है
 लागत में और लाभ बढ़ाता है।


 संसाधनों का इष्टतम उपयोग: -
विकास
की रणनीति के कारण है
 एक उत्पाद की मांग में वृद्धि।  इससे बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है
 और वितरण।  इसलिए फर्म का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है
 संसाधनों।

 व्यवसाय का विस्तार: -

 विकास की रणनीति की सुविधा
 व्यापार इकाई के लिए विस्तार।  क्योंकि व्यापार का प्रदर्शन
 बिक्री, बाजार हिस्सेदारी और लाभ के संदर्भ में इकाइयों में सुधार होता है।
     








          3. Intensification Strategy:
          3. गहनता रणनीति:
 गहन रणनीति में, व्यवसाय के भीतर बढ़ने की कोशिश करता है
 बाजार में प्रवेश, बाजार के माध्यम से मौजूदा कारोबार
 विकास और उत्पाद विकास।
 बाजार में प्रवेश का अर्थ है बाजार की वर्तमान बिक्री को बढ़ाना
 उच्च विज्ञापन, मूल्य में कटौती और जैसे आक्रामक प्रयास
 बिक्री संवर्धन आदि
 बाजार विकास का अर्थ है नए बाजारों में प्रवेश करना
 वर्तमान बाजार के साथ।  यहां व्यावसायिक इकाइयां बाजार का संचालन करती हैं
 अनुसंधान, प्रभावी मूल्य निर्धारण नीति, प्रभावी पदोन्नति मिश्रण और
 वितरण श्रृंखला।  और उत्पाद विकास का मतलब है परिचय
 सुधार या स्थानापन्न उत्पाद।  यह उसी बाजार में या हो सकता है
 नया बाज़ार।





      4. Diversification Strategy:
      विविधीकरण आंतरिक विकास रणनीति का एक प्रकार है।  यह है
 उत्पाद या व्यवसाय लाइन बदलना।  इस मामले में व्यापार में प्रवेश करता है
 नई व्यावसायिक सेवा या उत्पाद में जो मौजूदा का विस्तार है
 गतिविधि या कौशल प्रौद्योगिकी में पर्याप्त अंतर हो सकता है
 और ज्ञान।  कंपनी के जाने के कुछ कारण हैं
 विविधीकरण के लिए।  कारण इस प्रकार हैं


 जोखिम का प्रसार: -

 विविधीकरण जोखिम को फैलाने में सक्षम बनाता है।  में
 यह व्यवसाय विभिन्न बाजारों में संचालित होता है जहां एक में
 बाजार व्यवसाय को नुकसान होता है, जिसकी भरपाई दूसरे में की जा सकती है
 बाजार और लाभ के स्तर को बनाए रखा जाएगा।


 कॉर्पोरेट छवि को बेहतर बनाता है: -

 कॉर्पोरेट छवि बना रहा है
 लोगों के दिमाग में कंपनी की मानसिक तस्वीर।  के माध्यम से
 विविधीकरण कंपनी उत्पादों और ज्ञान को बदलती है
 बेहतर गुणवत्ता वाला उत्पाद और सेवाएँ देता है जिसके साथ यह बनाता है
 लोगों के मन पर सकारात्मक प्रभाव।


 प्रभावी रूप से सामना प्रतियोगिता: -

 विविधीकरण के कारण
 कंपनी उत्पादों और सेवाओं की विस्तृत श्रृंखला पेश करती है।  इस
 कंपनी को बाज़ार में इसकी बिक्री बनाए रखने में सक्षम बनाता है।



     5. टर्नअराउंड रणनीति:
 टर्नअराउंड रणनीति का मतलब है कि घाटे में चल रही इकाई को परिवर्तित करना
 एक लाभदायक।  यह संभव है जब कंपनी अपने व्यवसाय का पुनर्गठन करे
 संचालन।  यह प्रकृति में व्यापक है और इसमें विभाजन की रणनीति भी शामिल है
 (जहां व्यापार कुछ गतिविधियों से बाहर निकल जाता है या कुछ इकाइयों को बेच देता है या
 विभाजन) इसका उद्देश्य घटती बिक्री, बाजार में हिस्सेदारी और सुधार करना है
 सामग्री की उच्च लागत, कम कीमत के उपयोग के कारण लाभ
 माल और सेवाओं या प्रतियोगिताओं, मंदी, प्रबंधकीय वृद्धि
 दक्षता में।




6. विभाजन की रणनीति:
 विनिवेश उत्पादों को छोड़ रहा है या बेच रहा है, या
 कार्य करता है।  इसमें किसी व्यवसाय के हिस्से की बिक्री या परिसमापन शामिल है
 या प्रमुख विभाजन या उप।  यह पुनर्वास योजना और उसका एक हिस्सा है
 जब टर्नअराउंड की कोशिश की गई है, लेकिन इसे साबित कर दिया गया है


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BUSINESS LEVELS STRATEGIES / STRATEGIC
BUSINESS UNIT (SBU) STRATEGY




कॉरपोरेट स्तर की रणनीतियां फ्रेम वर्क का काम करती हैं
 व्यापार रणनीतियों संचालित।  उदाहरण के लिए, कॉर्पोरेट स्तर तय करता है
 एक व्यक्तिगत व्यवसाय की जरूरत है, जबकि स्थिर, विस्तार या पीछे हटना
 उपलब्धियों में योगदान देने के लिए उनकी अपनी रणनीतियाँ।
 व्यावसायिक रणनीतियाँ ए द्वारा अपनाई गई कार्रवाई का तरीका हैं
 अपने प्रत्येक व्यवसाय के लिए अलग से संगठन और उद्देश्य
 व्यक्तिगत व्यवसायों में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ विकसित करना
 कंपनी के पोर्टफोलियो में है और इसका उपयोग करने का लक्ष्य भी है
 संसाधन, कौशल, और तालमेल इसकी प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए
 फायदे।  बहु-उत्पाद और बहु-भौगोलिक क्षेत्र कंपनी
 प्रत्येक के प्रभावी ढंग से प्रबंधन के लिए रणनीतिक व्यापार प्रभाग बनाता है
 वह उत्पाद।  उदाहरण के लिए एक बहु-उत्पाद फर्म हिंदुस्तान को पसंद करती है
 यूनिलीवर लिमिटेड ने रणनीतिक व्यापार इकाई की अवधारणा को अपनाया है।
 प्रत्येक रणनीति टॉयलेटरीज़ जैसे विशेष उत्पादों पर ध्यान केंद्रित कर रही है,
 पेय, कपड़े धोने के उत्पादों, सौंदर्य प्रसाधन और इतने पर।
 इसे स्ट्रैटेजिक बिज़नेस यूनिट (SBU) रणनीति के रूप में भी जाना जाता है।  इस
 इसका प्रबंधन करने के लिए, USA की जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी द्वारा विकसित किया गया है
 बहु-उत्पाद व्यवसाय।  इसका उपयोग बहु-उत्पाद या बहु द्वारा किया जाता है
 भौगोलिक क्षेत्र की कंपनियों को प्रभावी ढंग से प्रत्येक का प्रबंधन करने के लिए
 उत्पाद या उत्पाद का एक समूह उदाहरण के लिए जैसे बहु-उत्पाद फर्म
 हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड एसबीयू की अवधारणा को अपना सकती है।  अलग
 एसबीयू बनाए जा सकते हैं, प्रत्येक विशिष्ट उत्पाद पर ध्यान केंद्रित कर सकता है
 प्रसाधन सामग्री, पेय पदार्थ, आइस-क्रीम, कपड़े धोने के उत्पाद, सौंदर्य प्रसाधन।



SUB के लाभ:
 कंपनी जो व्यवसाय स्तर की रणनीति अपनाती है
 कुछ फायदे जो इस प्रकार हैं-
 प्रभावी प्रबंधन: -सब द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है
 स्वतंत्र प्रबंधन यह अपने उत्पाद पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।  यह
 इसकी योजना, संगठन, उचित दिशा और प्रभावी में देखता है
 अपने संसाधनों का निष्पादन।  यह खुद का मार्केटिंग मिक्स भी देखता है
 अच्छे लाभ के लिए।
 इंट्रा प्रतियोगिता: - प्रत्येक गतिविधि को प्रबंधित किया जा रहा है
 स्वतंत्र रूप से, प्रत्येक प्रबंधक अपनी दक्षता और से साबित करने की कोशिश करेगा
 उस दृष्टिकोण से वह उसी के अन्य SUBs के साथ प्रतिस्पर्धा करेगा
 संगठन।
 उच्च दक्षता: - दक्षता को अनुपात के संदर्भ में मापा जाता है
 इनपुट और आउटपुट के बीच।  इसके तहत हर SUB कम से कम करने की कोशिश करेगा
 अपव्यय को कम करके उत्पादन की लागत, का अधिकतम उपयोग
 संसाधनों और सभी संसाधनों का समन्वय।
 बेहतर ग्राहक सेवा: -सीबी एसयूबी प्रभावी प्रदान करने का प्रयास करती है
 ग्राहक सेवा।  SUB ग्राहक की जरूरतों की पहचान करने की कोशिश करता है और
 समस्याओं, और तदनुसार उत्पादों के डिजाइन और
 विकास ताकि ग्राहक को अधिकतम संतुष्टि मिले।  साथ में
 यह ग्राहक संबंध विकसित करता है और अच्छी सेवाओं की पेशकश करता है
 ग्राहक।
 कर्मचारियों को प्रेरणा: - हर SUBs प्रबंधक टीम बनाता है
 कर्मचारियों के बीच भावना।  उन्हें पता चल रहा है कि उनका प्रदर्शन
 मान्यता है कि वे खुद को पूरी क्षमता से रखते हैं और देते हैं
 संगठन के लिए अधिकतम उत्पादन।
 कॉर्पोरेट छवि: -यह सद्भावना और प्रतिष्ठा बनाने का एक तरीका है
 लोगों के बीच संगठन का।  इस के साथ पूरा हो जाएगा
 की मदद-
 बेहतर ग्राहक सेवाएं
 नए और अभिनव उत्पाद
 प्रचार, विज्ञापन आदि के माध्यम से बाजार का विकास।





SUBs के नुकसान:
 व्यापार स्तर की रणनीति के कुछ नुकसान हैं
 इस प्रकार हैं।
 उच्च ओवरहेड्स: - जैसा कि हर SUB अपने स्वयं के कर्मचारियों की भर्ती करता है
 अतिरिक्त नाक।  संगठन के कर्मचारी जो नेतृत्व करेंगे
 वेतन वृद्धि।

आंतरिक प्रतिद्वंद्विता: - इस प्रणाली में प्रत्येक SUB यह साबित करने की कोशिश करता है कि वे
 अधिक कुशल हैं।  वे प्रत्येक की ओर अधिक संसाधन खींचने का प्रयास करते हैं
 अन्य और तदनुसार विवादों का निर्माण होता है।
 शीर्ष प्रबंधन से पूर्वाग्रह आधारित समर्थन: - यह संभव है कि
 सामग्री की आपूर्ति के संदर्भ में पक्षपात हो सकता है,
 संसाधनों की मान्यता, पुरस्कार या आवंटन।
 इंटर यूनिट तुलना की समस्या: - ऐसा करना काफी संभव है
 संगठन की दो या अधिक इकाइयों के बीच तुलना।  इस
 संगठन में पतला माहौल बनाने के लिए नेतृत्व करेंगे।








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FUNCTIONAL (OPERATIONAL) LEVEL
STRATEGIES





कार्यात्मक रणनीति व्यापार और कॉर्पोरेट से ली गई है
 कार्यनीतियां और कार्यात्मक कार्यान्वयन के माध्यम से कार्यान्वित की जाती हैं।
 कार्यात्मक रणनीति अपेक्षाकृत प्रतिबंधित योजना से संबंधित है
 एक विशिष्ट कार्यात्मक क्षेत्र में उद्देश्यों को प्राप्त करता है, का आवंटन
 उस कार्यात्मक क्षेत्र के भीतर विभिन्न कार्यों के बीच संसाधन और
 इष्टतम योगदान के लिए विभिन्न कार्यात्मक क्षेत्रों के बीच समन्वय
 व्यवसाय या कॉर्पोरेट स्तर के उद्देश्यों की उपलब्धि।
 रणनीति कार्यान्वयन का मुख्य कार्य गतिविधियों को संरेखित करना है
 या अपनी रणनीतियों के साथ संगठन की क्षमताएं।  इसके लिए, वहाँ है
 विभिन्न स्तरों पर रणनीतियों के बीच समन्वय की आवश्यकता है।
 परिचालन रणनीति में मुख्य रूप से उत्पादन शामिल है
 रणनीतियों, विपणन रणनीतियों, वित्तीय रणनीति और मानव
 संसाधनों की रणनीति।




A. उत्पादन संरचनाओं।
 उत्पादन रणनीतियों का उद्देश्य मुख्य रूप से गुणवत्ता में सुधार करना है,
 मात्रा में वृद्धि और उत्पादन की लागत को कम करना।  इस काम के लिए
 निम्नलिखित गतिविधियों पर विचार करने की आवश्यकता है।
 1) उत्पादन क्षमता: एक संगठन को अपने उत्पादन का फैसला करना चाहिए
 क्षमता।  यह व्यक्तिपरक है और उत्पाद की मांग पर निर्भर करता है
 बाजार में और प्रतिस्पर्धा के कारण बाजार में उतार-चढ़ाव,
 मंदी, बाजार में उछाल आदि लेकिन कुछ संगठन निर्णय लेते हैं
 इसकी बिक्री के पूर्वानुमान के आधार पर।  अब एक दिन कुछ फर्में हैं
 उत्पादन का कुछ हिस्सा और आंशिक रूप से वे खरीद रहे हैं
 अन्य।  तो इन सभी पहलुओं पर विचार के साथ व्यापार
 इसकी उत्पादन क्षमता को ठीक करना चाहिए।

2) पौधों का स्थान और आकार: स्थान पर निर्णय लेते समय
 व्यवसाय स्थान सुरक्षा के दृष्टिकोण से कुछ बिंदुओं पर विचार करता है
 और सुरक्षा, कच्चे माल की उपलब्धता की स्थानीय स्थितियाँ
 बाजार कानून और व्यवस्था की स्थिति, उपलब्धता की स्थिति
 बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ सक्षम कार्य बल।
 संयंत्र का आकार अनुमानित के आधार पर तय किया जाएगा
 उत्पाद और अन्य फर्मों पर फर्म की निर्भरता के लिए मांग
 आंशिक रूप से निर्मित माल की आपूर्ति कर रहे हैं।
 प्रौद्योगिकी: - यह पता है कि कैसे और उपकरण,
 इन चीजों के उत्पादन का निर्णय लेते समय मशीनरी, उपकरण आदि
 इस पर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि इसका प्रभाव पूंजीगत जनशक्ति पर है, और
 बनाने की किमत।
 अनुसंधान और विकास: - आर एंड डी गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है
 उत्पादन आदि की लागत को कम करता है इसलिए इस पर विचार किया जाना चाहिए
 देखने का निवेश बिंदु, इसकी प्रक्रियाओं और केंद्रीकृत या
 विकेंद्रीकृत प्रकृति।
 उत्पाद की गुणवत्ता: - उत्पादन रणनीतियों से संबंधित हैं
 उत्पाद की गुणवत्ता।  गुणवत्ता का मतलब उत्पाद की फिटनेस है।  तथा
 यह ग्राहक से ग्राहक में भिन्न होता है।  यहां फर्म को जरूरत है
 पहले उसके ग्राहक को जानें और फिर उत्पाद की गुणवत्ता तय करें
 ग्राहक को यह उपयुक्त लगता है या नहीं।  वे इसे पसंद कर सकते हैं
 गुणवत्ता, मूल्य आदि और फिर उत्पादन के लिए जाना।


        B. विपणन संरचनाएँ।
 मार्केटिंग से तात्पर्य ग्राहक की पूरी समझ से है
 वह उत्पाद की इच्छा से (अपनी धारणाओं के दृष्टिकोण से)
 उत्पाद।) यह किसी भी संगठन का महत्वपूर्ण पहलू है
 सफलता ज्यादातर विपणन के प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार है।
 इसलिए हर व्यवसाय को उपयुक्त मार्केटिंग की आवश्यकता होती है
 निम्नलिखित के संबंध में रणनीतियाँ।


   C. वित्तीय संरचना।
 वित्त प्रत्येक व्यवसाय इकाई की पीठ की हड्डी है।
 इसलिए व्यापारिक इकाइयों के वित्तीय प्रबंधन से संबंधित है
 के कार्यों की योजना बनाना, उठाना, उपयोग और नियंत्रण करना
 अपने लक्ष्य को पाने के लिए संगठन के वित्तीय संसाधन।
   
   
मानव संसाधन संरचना:
 मानव संसाधन सभी के बीच सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है
 एक संगठन द्वारा आवश्यक संसाधन।  यही एकमात्र जीवित और है
 सनसनीखेज संसाधन।  इसलिए हर संगठन जो चाहता है
 विकसित और तेजी से बढ़ने के बारे में बहुत सतर्क होना चाहिए
 संसाधनों और उनके सर्वोत्तम उपयोग और प्रदर्शन के लिए योजना बनानी चाहिए।  अगर
 व्यापार ऐसा करने में सक्षम है तो यह अपनी सफलता के शीर्ष स्तर को प्राप्त करेगा
 बिना किसी बाधा के।  इसके लिए संगठन को निर्णय लेने होंगे
 के संबंध में






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Tuesday, March 12, 2019

Methods and techniques of Plant layout in hindi by Swami Sharan

Hello guys,

   Today I will discuss about methods and techniques of Plant layout.

प्लांट लेआउट के 6 सबसे महत्वपूर्ण तकनीक


1. प्रक्रिया चार्ट:

यह एक ग्राफ है जिसमें संगठन के कार्य से लेकर अंतिम चरण तक की विभिन्न गतिविधियों और कार्यों के बारे में विवरण है।

2. प्रक्रिया प्रवाह आरेख:

यह चार्ट को संसाधित करने के लिए एक सहायता है। यह मशीनों की स्थिति, प्रत्येक मशीन द्वारा कवर क्षेत्र, आंतरिक परिवहन और उत्पादन से संबंधित अन्य कार्यों से संबंधित विवरण से संबंधित है। यह मॉडल आरेख कागज पर तैयार किया जाता है।

3. टेम्पलेट:

एक मशीन द्वारा कवर क्षेत्र को टेम्पलेट बनाने के लिए एक मोटे कागज से बड़े पैमाने पर काटा जाता है। न केवल मशीनें बल्कि फर्नीचर, उपकरण और अन्य घटकों द्वारा कवर किया गया स्थान भी एक टेम्पलेट बना सकता है। इन्हें अच्छी तरह से व्यवस्थित करने के लिए लेआउट की वास्तविक योजना का प्रतिनिधित्व किया जा सकता है।

4. माडल:

मशीनरी, उपकरण और अन्य उपकरणों और घटकों के तीन आयामी लकड़ी के मॉडल तैयार किए जा सकते हैं। इन मॉडलों को देखकर भी एक आम आदमी संयंत्र के लेआउट के बारे में एक विचार बना सकता है। लेकिन यह तकनीक बहुत महंगा है और केवल बड़ी चिंता इस तरह के उपाय को स्थापित करने के लिए खर्च कर सकती है।

5. चित्र:

लेआउट चित्र दीवारों, सीढ़ी, मशीनों और उपकरणों आदि को दिखाने वाले ड्राफ्ट पुरुषों द्वारा तैयार किए जा सकते हैं।

6. मशीन डाटा कार्ड:
ये कार्ड प्लांट में काम करने वाली विभिन्न मशीनों से बंधे होते हैं। ये मशीन की विभिन्न मुख्य विशेषताओं या विशेषताओं के बारे में मूल्यवान जानकारी प्राप्त करते हैं। दक्षता, क्षमता अंतरिक्ष क्षेत्र जो मशीन द्वारा कवर की जाती है और ऑपरेटिंग सिस्टम की तकनीक आदि।









   🏨🏫✍✍✍✍Po Post by Swami Sharan

Friday, March 1, 2019

WHAT IS SEBI ? WHAT ARE THE ROLE OF SEBI. By Swami Sharan

वर्ष 1992 के शेयर घोटाले के परिप्रेक्ष्य में निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ (Securities and Exchange Board of India-SEBI) ने भारतीय पूंजी बाजार की गतिविधियों पर एक के बाद एक अपना शिकंजा कसा है ।
पहले शेयर बाजार के दलालों व उपदलालों के कार्यकलापों तथा इनसाइडर ट्रेडिंग के लिए आचार संहिता निर्धारित करने के पश्चात मर्चेण्ट बैंकरों के लिए विस्तृत नियमावली की घोषणा की गई । 1 जनवरी, 1993 से मर्चेन्ट बैंकर के क्रियाकलापों को सरकार द्वार सेबी के दायरे में लाने की घोषणा की गई ।
नये नियमों के तहत अब कोई भी व्यक्ति अथवा फर्म सेबी से पंजीकरण प्रमाण-पत्र प्राप्त किये बिना मर्चेन्ट बैंकर के रूप में कार्य नहीं कर सकेगा । मर्चेन्ट बैंकर के झर्यकलापों के लिये भी एक आचार-संहिता की घोषणा की गई है । मर्चेन्ट बैंकरों को 4 श्रेणियों में विभाजित करते हुए प्रत्येक श्रेणी के अन्तर्गत उनके कार्यों को परिसीमित किया गया है ।

मर्चेन्ट बैंकर्स, जो कम्पनियों के शेयर निर्गमन में सहायक होते है, के लिए यह निर्देशित किया गया है कि वे यह सुनिश्चित करे कि शेयरों, के आबंटन में कोई अनियमितता न हो तथा आबंटन न होने की दशा में निवेशकों की आवेदन राशि ब्यई वापसी में विलम्ब न हो ।
मर्चेन्ट बैंकर्स के पश्चात् पोर्टफोलियो मैनेजरों की बारी आई । जानकी रमन समिति ने अपनी तीसरी रिपोर्ट में विशेषकर विदेशी बैंकों द्वारा पोर्टफोलियो मैनेजमेट स्कीम के व्यापक दुरुपयोग का उल्लेख किया था । निवेशकों के हितों कई सुरक्षा के लिए अब पोर्टफोलियो मैनेजरों के लिए भी सेबी में पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है ।
पोर्टफोलियो मैनेजरों के लिए घोषित नियमावली में कहा गया है कि पंजीकरण के लिये व्यक्ति अथवा फर्म की है सियत कम से कम 50 लाख रुपये ही होनी चाहिए तथा निवेशके से प्राप्त धनराशि का उपयोग पोर्टफोलियो मैनेजों द्वारा बिलो की कटौती अथवा ‘बदला’ के वित्तीयन हेतु नहीं किया जाए । नियमावली में यह भी निर्देश है कि पौर्टक्टेलियो मैनेजर प्रतिभूतियों के मिथ्या बाजार मई संरचना अथवा इनके मूल्यों के तोड़-मरोड में प्रतिभागी नहीं बनेंगे ।
20 जनवरी, 1993 को सेबी ने म्यूचुअल फण्ड्स के क्रियाकलापों क भी सुचारु करने के लिए एक विस्तृत नियमावली की घोषिणा की । सेबी द्वारा अब केवल उन्हीं म्यूचुअल फण्ड्स को पंजीकरण प्रदान किया जाएगा जो कुशल एवं सुव्यवस्थित व्यापार कर सकेंगे । इसे निर्धारित करने के लिये प्रायोजक का गत वर्षों का रिकार्ड देखा जाएगा ।


प्रायोजक का वित्तीय सेवाओं द्वारा सुस्वस्थ व्यापारिक लेन-देन का कम से कम 5 वर्ष का अनुभव होना चाहिए । म्यूचुअल फण्ड्स के लिए जो आचार संहिता घोषित की गई है, उसमें एक प्रावधान यह भी है कि फण्ड द्वारा किसी भी परिसीमित योजना में एकत्रित हो जाने वाली धनराशि 20 करोड़ रुपये तथा खुली योजना में 50 करोड रुपये से कम की नहीं होनी चाहिए ।
यदि किसी योजना में फण्ड को इससे कम राशि प्राप्त होती है तो पूरी धनराशि निर्गम बन्द होने की तिथि से 6 सप्ताह के अन्दर ही निवेशकों को लौटानी होगी । नियमों के तहत अब फण्ड को अपनी प्रत्येक योजना का वार्षिक विवरण प्रकाशित करना अनिवार्य है । सेवी को यह अधिकर दिया गया है कि वह प्रत्येक म्यूचुअल फण्ड के हिसाब-किताब की जाँच के लिए अपना ऑडीटर नियुक्त कर सकता है ।
‘सेबी’ हमारे देश के प्राथमिक एवं सहायक, दोनों प्रकार के प्रतिभूति बाजारों से का समुचित नियमन एवं नियन्त्रण करता है । इस महत्वपूर्ण कार्य में ‘सेबी’ संवर्धनात्मक, नियोजनकर्ता एवं पथ-प्रदर्शक की भूमिकायें भी निभाता है । प्रतिभूति बाजार से ‘सेबी’ की भूमिका को समझाने के लिए यहाँ पर हम प्राथमिक एवं सहायक बाजारों के सन्दर्भ विवेचन प्रस्तुत कर रहे है ।

(I) प्राथमिक बाजार में ‘सेबी’ की भूमिका (Role of SEBI in Primary Market):

प्राथमिक बाजार में ‘सेबी’ की भूमिका नये निर्गमों के सम्बन्ध में है । इसने निवेशों, विशेषकर छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है ।
प्राथमिक बाजार में ‘सेबी’ की भूमिका को इस क्षेत्र में इसके द्वारा किये गये महत्वपूर्ण अग्रलिखित योगदान से स्पष्टत समझा जा सकता है:
1. प्रविवरण के प्रारूप में सुधार:
पर्याप्त सूचनायें प्रदान करने तथा प्रविवरण के माध्यम से कम्पनियों को अधिक पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से ‘सेबी’ ने प्रविवरण का नया प्रारूप तैयार किया है । इसमें कुछ ऐसे नये शीर्षकों का समावेश किया गया है, जिससे कम्पनियों को अधिक सही व व्यापक सूचनायें उपलब्ध करवानी पडती है ।
2. जोखिम-घटकों को प्रकट करना अनिवार्य:
  प्रत्येक कम्पनी को नये तथा अधिकार निर्गमन के समय अपनी परियोजनाओं से सम्बन्धित ऐसे जोखिम-घटकों को अनिवार्य रूप से उजागर करना होगा जो प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से निवेशकों के हितों को प्रभावित कर सकते है ।
कम्पनियों को निम्नलिखित के बारे में स्पष्टतः उल्लेख करना होगा जो साधारणतः प्रविवरण में या किसी अन्य सार्वजनिक माध्यम से स्पष्ट किये जा सकते हैं:
(i) परियोजना के पूरा होने वाला बिलम्ब तथा इसकी बढी हुई लागतें ।
(ii) परियोजना के सम्बन्ध में प्रवर्तकों का आलोचनात्मक मूल्यांकन ।
(iii) निर्गमन के समय तक ऐसी वैधानिक अनुमतियाँ जो प्राप्त नहीं हो सकी हैं ।
(iv) कच्चे माल के मिलने में आ रही/आने वाली बाधायें ।
(v) उत्पादन के विपणन में बाधायें ।
(vi) विदेशी विनिमय दर की सवेदनशीलता (अचानक होने वाली उच्चावचन) का परियोजना पर प्रभाव ।
3. पृथक करने योग्य संक्षिप्त प्रविवरण की शुरुआत:
‘सेबी’ ने एक ऐसा प्रविवरणयुक्त आवेदन-पत्र विकसित किया है । जिसमें संक्षिप्त में प्रविवरण की महत्वपूर्ण जानकारी है तथा जिसे अलग किया जा सकता है । इससे विनियोजकों को विनियोग हेतु आवेदन करते समय ही कम्पनी तथा उसके परियोजनाओं के सम्बन्ध में सभी प्रमुख बातों की संक्षिप्त जानकारी उपलब्ध हो जाती है ।
4. अंशों के आबंटन व सूचीयन को पूरा करना:
कम्पनियों के अंशों के आबंटन व उनके सूचीयन को निर्दिष्ट समय पर पूरा कराने के उद्देश्य में ‘सेबी’ ने महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं । अब स्कन्ध विनिमय केन्द्र कम्पनी की कुल निर्गमन राशि का एक प्रतिशत जमा करने लगे है । यदि कम्पनी के द्वारा अंशों के आबंटन, राशि वापस करने या अंशों के सूचीयन में कोई विलम्ब या त्रुटि होती है तो, जमा की गयी राशि को जब्त किया जा सकता है तथा निवेशक एवं आवेदनकर्ता को राहत प्रदान की जाती है ।
5. मर्चेन्ट बैंकर्स का पंजीयन:
प्राथमिक बाजार में बैंकर्स द्वारा ही नये निर्गमनों का प्रबन्ध किया जाता है तथा प्रवर्तकों को आवश्यक सहायता प्रदान की जाती है । ‘सेबी’ ने इनका पंजीयन अनिवार्य कर दिया है । ‘सेबी’ ने इन्हें कम्पनी प्रविवरण में उल्लेखित बातों से लेकर नये निर्गमनों की समस्त औपचारिकताओं को पूरा करने तक, उत्तरदायी ठहराने के लिए नये नियम बनाये है ।
6. प्रमुख संस्थाओं का पंजीयन:
नये निर्गमनों से सम्बन्धित प्राथमिक बाजार की अन्य प्रमुख संस्थाओं जैसे-निर्गमन प्रबन्धक, बैंकर, अभिगोपक आदि के पंजीयन के लिए ‘सेबी’ द्वारा व्यवस्था की गयी है । इस कार्य का प्रमुख उद्देश्य निर्गमों को सही व उचित ढंग से निष्पादित करवाना है तथा इस प्रक्रिया के दोषों व त्रुटियों पर कडी निगरानी रखना है ।
7. निवेशकों की समस्याओं का समाधान:
निवेशकों की समस्याओं, शंकाओं तथा शिकायतों के समाधान हेतु ‘सेबी’ पूर्णतः सजग रख सक्रिय है । लम्बे अन्तराल के बाद भी जब कम्पनियाँ निवेशकों की शिकायतों व समस्याओं पर ध्यान नहीं देती तब ‘सेबी’ को सूचित करने पर, ‘सेबी’ द्वारा हस्तक्षेप किया जाता है । यदि समस्या कम्पनी के स्तर की है तब कम्पनी द्वारा अथवा ‘सेबी’ के स्वयं के द्वारा उसे हल करने के प्रयास कराये/किये जाते है ।
8. विनियोजक संघों का पंजीयन:
विनियोजकों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के उद्देश्य से ‘सेबी’ ने विनियोजक संघों का पंजीयन करना शुरू किया है । विनियोजक संघों के माध्यम अनेक सूचनाये सार्वजनिक प्रकाशन माध्यमों में प्रमारित ‘सेबी’ द्वारा सही मार्गदर्शन के लिए कुछ पुस्तकों का प्रकाशन भी किया गया है ।
10. ‘स्टॉक-इन्वेस्ट’ योजना लागू करना:
इस योजना को लागू करवाने में ‘सेबी’ ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है । ‘स्टॉक-इन्वेस्ट’ बैंकों के द्वारा जारी अंशों के आवेदन-पत्र के साथ लगा सकता है । जब तक ‘स्टॉक-इन्वेस्ट’ जारी करने वाले बैंक के पास जमा रहती है । जब कम्पनी आवेदनकर्ता को अंश आबंटित कर देती है को भेज देता है ।
11. पारदर्शिता से निर्गमनों में विश्वास:
उपरोक्त प्रयासों द्वारा नये निर्गमनों में पारदर्शिता लाने का प्रयास किया गया है । ‘सेबी’ ने मार्गदर्शक नियमों की घोषणा भी की है । इसके फलस्वरूप नये निर्गमनों के पर्याप्त सूचनाओं के साथ-साथ प्रीमियम निर्धारित करने के सूत्रों का भी प्रकाशन किया जाने लगा है ।
अब कम्पनियों को अपने द्वारा वसूली की जाने वाली प्रीमियम राशि का औचित्य व आधार बताना पड़ता है । इतना ही नहीं, बल्कि इसके अलावा इन्हें अपनी परियोजना के भावी वर्षों के अनुमानित परिणामों का उल्लेख करना पडता है । अब ऋण-पत्रों के लिए भी (18 से अधिक अवधि के) जारी करने से पूर्व प्रत्येक संस्था को साख-मूल्यांकन कराना पडता है ।

(II) सहायक बाजार में सेबी की भूमिका (Role of SEBI in Secondary Market):

सहायक बाजार में ‘सबी’ की भूमिका स्कन्ध विनिमय केन्द्रों के कार्यकलापों में मात्रात्मक (Quantitative) एवं गुणात्मक (Qualitative) सुधार लाने से सम्बन्धित है ।
इसे निम्नलिखित बिन्दु-विश्लेषण से समझा जा सकता है:
1. स्कन्ध विनिमय केन्द्रों का नेटवर्क तैयार:
‘सेबी’ ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है । आज देश भर में सम्बन्ध विनिमय केन्द्रों का एक विकसित नेटवर्क तैयार हो गया है । ‘सेबी’ की स्थापना के बाद आठ नये स्कन्ध-विनिमय केन्द्र स्थापित किये गये हैं । देश में राष्ट्रीय सम्बन्ध विनिमय केन्द्र के अलावा 23 अन्य स्कन्ध विनिमय केन्द्र कार्य कर रहे हैं । इसमें छोटी कम्पनियों व निवेशकी के लिए एक ‘ओवर द काउण्टर एक्सचेंज ऑफ इण्डिया- OTCEI’ भी सम्मिलित है ।
2. स्कन्ध-विनिमय केन्द्रों के गठन में सुधार:
‘सेबी’ ने स्कन्ध विनिमय केन्द्रों की शासकीय समिति के गठन के सम्बन्ध में मार्गदर्शक नियम घोषित किये है । नियमानुसार शासकीय समिति में पाँच चुने हुए सदस्य, तीन सरकारी या ‘सेबी’ द्वारा नामांकित प्रतिनिधि, अधिकतम तीन जनता के नामांकित प्रतिनिधि तथा कार्यकारी निदेशक को मिलाकर कुल ग्यारह सदस्य होने चाहिए । इस प्रकार प्रशासकीय समिति में सभी केन्द्रों में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो सकेगा ।
3. परामर्शदात्री समिति का गठन:
इस समिति का गठन दोनों प्रकार के बाजारों-प्राथमिक एवं सहायक के लिए किया गया है । इसका गठन दोनों ही प्रकार के बाजारों में निवेशकों के साथ विचार विमर्श करने तथा उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए किया गया है ।
4. शोध एवं प्रकाशन प्रारम्भ:
‘सेबी’ ने वित्तीय क्षेत्र में नवाचार, बाजार में दक्षता लाने, पेशेवर प्रवृत्तियों का विकास करने तथा प्रतिभूतियों के श्रेष्ठ प्रबन्ध के लिए शोध करवाना तथा इनके निष्कर्षों का प्रकाशन करना प्रारम्भ कर दिया है ।
5. विदेशी संस्थागत निवेशकों का पंजीयन:
‘सेबी’ ने विदेशी सम्भागत निवेशकी, जैसे- पेन्शन फण्ड, पारस्परिक निधियों, प्रन्यास, विनियोग प्रबन्ध कम्पनियो आदि का पंजीयन करना शुरू का दिया है ‘सेबी’ इन विदेशी संस्थागत निवेशकों के बारे में पंजीयन के माध्यम से महत्वपूर्ण जानकारी रखता है । ऐसी विदेशी संस्थाये भारतीय स्कन्ध विनिमय केन्द्रों में का क्रय-विक्रय कर सकती है । इससे प्रतिभूति बाजार में खुलापन आ रहा है तथा वैश्वीकग्ण की प्रवृत्तियाँ विकसित हो रही है ।
6. पोर्टफोलियो (प्रतिभूति) प्रबन्धकों का पंजीयन:
‘पोर्टफोलियो’ का आशय किसी व्यक्ति द्वारा ‘धारित प्रतिभूतियो’ से है । आजकल प्रतिभूति बाजार में पोर्टफोलियो प्रबन्धकों का महत्व बढ़ रहा है । पोर्टफोलियो प्रबन्धक किसी व्यक्ति या संस्था की प्रतिभूतियो का प्रबन्ध करता है, उसके कोषों का विनियोजन करता है तथा उन्हें विनियोग परामर्श प्रदान करता है ।
‘सेबी’ ने पोर्टफोलियो प्रबन्धकों का पंजीयन अनिवार्य कर दिया है । इसके लिए योग्यतायें, वित्तीय साधन तथा अन्य आधारभूत साधन तथा अन्य आधारभूत साधन संबंध मानदण्ड भी निर्धारित किये हैं ।
7. दलालों एवं उपदलालों का पंजीयन:
सभी दलालों एवं उप-दलालों का पंजीयन अब ‘सेबी’ द्वारा अनिवार्य कर दिया है । इससे शेयर बाज़ारों तथा स्कन्ध विनिमय केन्द्रों में कार्य करने वाले व्यक्तियों पर पभावी नियन्त्रण रखा जा सकेगा । इसके पंजीयन के लिये ‘सेबी’ ने योग्यतायें, शुल्क, वित्तीय व आधारभूत साधन की आवश्यकतायें भी निर्धारित की है ।
8. स्कन्ध विनिमय केन्द्रों की कार्यप्रणाली में सुधार:
इस दिशा में ‘सेबी’ ने अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य किया गया है । ‘सेब’ के प्रयासों के परिणामस्वरूप अब प्रायः सभी स्कन्ध विनिमय केन्द्रों में नकद-समूह के सौदों का विनिमय में केन्द्रों की दैनिक न्यूनतम कार्य अवधि को ढाई घाटे से बढ़ाकर तीन घण्टे कर दिया गया है ।
9. स्कन्ध विनिमय केन्द्रों का निरीक्षण:
‘सेबी’ ने स्कम विनिमय केन्द्रों के निरीक्षण कार्य को भी अपने हाथ में लिया है । निरीक्षण में अनेक प्रकार के सुधार हुए है तथा स्कन्ध विनिमय केन्द्रों पर एक सीधा अंकुश लगा है । इससे स्कन्ध विनिमय केन्द्रों की कार्यप्रणाली का लगातार नियमन होता है ।

goods and services tax notes for one day examination by Swami Sharan

Full form of GST  Goods and services tax  भारत में जीएसटी कब लागू हुआ  1 जुलाई 2017 को  जम्मू और कश्मीर में जीएसटी की शुरुआत हुई  8 जुलाई 20...