Economists opinion:
मानव की दक्षता, बुद्धि व ज्ञान कुंजी है या नहीं इस अवधारणा पर अर्थशास्त्रियों ने काफी चिंतन व तर्क किए हैं 17वीं शताब्दी के मध्य में अर्थशास्त्री सर विलियम पीटी ने मानव संसाधन को मौद्रिक रूप में मूल्यांकन करने का प्रयत्न किया था और तब इस प्रकार की अवधारणा को व्यापक स्तर पर अनेक अर्थशास्त्रियों ने प्रयुक्त किया है। व्यापक स्तर पर मानव को उत्पादन का साधन मात्र नामांकन पूंजी मानने का श्रेय बेटी के अतिरिक्त प्रख्यात व प्रतिष्ठित , नवप्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों को जाता है।
बीसवीं शताब्दी के मध्य में कुछ अर्थशास्त्रियों को मानव पूंजी अर्थशास्त्री के श्रेणी में रखा गया इनमें से पियोडर W Schulz प्रमुख हैं, जिनका मत है, " मानव प्राणी को पूंजीगत वस्तु ना मानने का कारण मानव छवि के विषय में भावनात्मक दृष्टि वह उसके मापने की निहित जटिलता और अव्यावहारिकता की है।"
Lester C Thurow, के अनुसार मानव प्राणियों की उत्पादकता संबंधी क्षमता का मापन के साधन के रूप में ही मानव पूंजी अवधारणा को आर्थिक विश्लेषण में लागू किया गया। जो अर्थशास्त्री मानव पूंजी की अवधारणा का विरोध करते हैं, उनका तर्क यह है कि व्यक्तिगत दक्षता व योग्यता को कभी भी पूंजी नहीं माना जा सकता क्योंकि उनमें हस्तांतरण ी यता की कमी होती है और उनके मापन में, कठिनाई होती है। लेकिन यह तर्क सैद्धांतिक ना होकर वह व्यव्हरआतमक है।
Accountants of opinion:
जैसा कि अन्यत्र बताया गया है, लेखापाल को ने भी प्रारंभ में मानव संसाधन को पूंजी या संपत्ति नहीं माना और इसे कभी भी खाता बही हो वह वित्तीय विवरणों में नहीं दिखाया इसके लिए कई कारण उत्तरदाई थे-
1 व्यक्तियों को संपत्ति के रूप में समझना वह खातों में दर्शना सरल नहीं है; परिभाषा के अनुसार संपत्ति वह है जिसे हस्तांतरित ना किया जा सके और संस्था की संपत्ति पर जिनका कोई मूल्य हो, परंतु व्यक्तियों को बेचा नहीं जा सकता और ना ही व्यवसाय की समाप्ति पर इनका कोई मूल्य होता है और जो संपत्ति नोटिस देकर संस्था को छोड़ दे उसे किसी भी माने में संपत्ति नहीं कह सकते हैं।
2 प्रारंभ से ही संपूर्ण लेखा पद्धति अंश धारियों सरकार, बाह्य व्यक्तियों के प्रति सेवा अर्पण का कार्य कर रही है; आंतरिक प्रबंधक को सूचना प्रदान करने का नहीं। फल स्वरुप मानव संसाधन के उसी अंग का लेखा रखा जाता रहा है, जो उनके द्वारा अर्पित सेवा के बदले में किए गए भुगतान। वेतन व मजदूरी से संबंधित रहा हो।
3 मानव संसाधन के लागत व मूल्य की मापन संबंधी कठिनाइयों के कारण भी इन्हें संपत्ति नहीं माना गया।
परंतु हाल ही में लेखा पालक के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है। और वर्तमान काल में व्यवसायिक संस्थाओं द्वारा कर्मचारियों की भर्ती, प्रशिक्षण आदि पर किया गया वह विनियोग है ना कि अयगत व्यय।
कर्मचारियों की भर्ती प्रशिक्षण व उसके विकास पर बड़ी मात्रा में धन खर्च किया जा रहा है जिसके पीछे उद्देश्य यही है कि योग्य व कुशल व्यक्तियों से संस्था को भविष्य में सतत रूप में लाभ मिलता रहेगा।
चुकी संस्था को एक सतत चलने वाली इकाई माना गया है, अतः मानवीय संसाधनों के विकास पर किए गए खर्च से प्राप्त भाभी लाभ के कारण इस वीडियो को संपत्ति माना जा सकता है इस प्रकार वर्तमान में लेखांकन विशेषज्ञों द्वारा मानव संसाधन को संपत्ति की मान्यता प्रदान की गई है।
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