Saturday, February 16, 2019

मानव संसाधन प्रबधन by Swami Sharan

✍🏻मानव संसाधन प्रबंधन के कार्य ✍🏻

1.कर्मचारियों में मधुर सम्बन्ध 2.बनाये रखने की दृष्टि से अनुकूल नीतियों का निर्माण करना।
3.नेतृत्व विकास के लिये समुचित कार्य करना।
4.सामूहिक सौदेबाजी, समझौता, संविदा प्रशासन तथा परिवाद निवारण करना।
5.श्रम श्रोतों की जानकारी रखना तथा कार्य के अनुरूप उपयुक्त व्यक्ति का चयन करना।
6.विकास हेतु उपयुक्त अवसरों को श्रमिकों हेतु सुलभ कराना तथा उनकी योग्यता प्रदर्शन के लिये अवसर प्रदान करना।
7.कर्मचारियों में कार्य के प्रति उत्साह बनाये रखना तथा प्रोत्साहन देते रहना।
8.संगठन में मानव संसाधन का मूल्यांकन करते रहना।
9.मानव संसाधन के क्षेत्र में शोध की व्यवस्था बनाये रखना तथा शोध के निष्कर्षों का नीति निर्माण में उपयोग करना।
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इस प्रकार योडर ने आठ प्रमुख कार्यों को माना है जबकि नार्थ कोट ने मानव संसाधन प्रबंधक के कार्यो को तीन दृष्टियों से देखने का प्रयास किया है :-

1.जन कल्याण दृष्टिकोण।
2.वैज्ञानिक प्रबंध दृष्टिकोण।
3.औद्योगिक सम्बन्ध दृष्टिकोण।

इस प्रकार मानव संसाधन प्रबंधन के द्वारा ही उपरोक्त दृष्टिकोण रखते हुये श्रमिक के शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास एवं सुरक्षा के क्षेत्र में विधि सम्मत तथा अन्य जनहितकारी कायोर्ं को करना चाहिये तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही कर्मियों का चयन, प्रशिक्षण, उचित पारिश्रमिक/मजदूरी, बोनस, वेतन वृद्धि तथा अन्य धार्मिक लाभ जिनसे उनमें कार्य मे लगे रहने की इच्छा, अधिकतम उत्पादन हेतु श्रम करने तथा भूमिका का निर्वाह करना तथा औद्योगिक सम्बन्ध दृष्टिकोण से उद्योग में शांति बनाये रखना तथा किसी असंतोष या विवाद की स्थिति में शीघ्रता से समाधान कराना तथा श्रम संघों से विचार विमर्श करते रहना और उनकी सहमति से निपटारा कराना। यदि औद्योगिक अशांति परस्पर सहमति से न बन पा रही हो तो संसाधन मशीनरी एवं ट्रिव्यूनल कोर्ट के माध्यम से समाधान निकालना।
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ए0 एफ0 किंडाल के मानव संसाधन प्रबंधन के अन्तर्गत अधोलिखित कार्यो को माना है :-
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1.उपक्रम के उद्देश्य के अनुरूप नीतियों का निर्माण एवं कार्य प्रणालियों का विकास करना, नियंत्रण करना तथा संचार प्रणाली को विकसित करना।
2.संगठन के सभी स्तर पर पर्यवेक्षण, नेतृत्व तथा प्रोत्साहन प्रदान करना।
3.प्रशासन के समस्त आयामों में सहयोग तथा आवश्यक सुझाव प्रस्तुत करना।
4.नीतियों को सुनियोजित ढंग से क्रियान्वित करना।
5.कार्यान्वयन हेतु निरंतर सचेष्ट रहना।
6.श्रम आंदोलनों पर ध्यान देना और उनके समाधान में सक्रिय रहना।
7.नीतियों का श्रमिकों में व्यापक प्रचार और समझ पैदा करना तथा श्रमिकों या उनके संगठनों के सुझावों को उच्च स्तरीय प्रशासकों तक पहँचाना कार्य हैं।
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इसी प्रकार एच0 एच0 कैरी ने मानव संसाधन प्रबंधन के ये कार्य बताये हैं :-

1.कार्मिक प्रशासन का गठन - जिसके अन्तर्गत प्रशासकों एवं कर्मचारियों के दायित्व का निर्धारण करना, नीति निर्माण के लिये समितियों का गठन प्रशासकों एवं कर्मचारियों में सद्भावना स्थापित करना, तथा व्यक्तियों का मूल्यांकन करना।

2.प्रशासन तथा पर्यवेक्षण - प्रशासनिक अधिकारियों तथा पर्यवेक्षकों के कर्त्तव्य एवं दायित्व का निर्धारण करना, परिवाद निवारण हेतु उपयुक्त श्रंख्ृ ाला का निर्माण करना, बहुउद्देश्यीय प्रबंध योजनाएँ बनाना, पर्यवेक्षणीय योजनायें निर्धारित करना। दिशा-निर्देशन कार्य हैं।

3.श्रम नियोजन - कर्मचारियों की आवश्यकताओं को प्रतिष्ठान के अनुरूप पूर्वानुमान, श्रमिक भर्ती की नीति निर्धारण, कार्य विवरण निर्धानित करना, मजदूरी दर निर्धारित करना, भर्ती-चयन का निर्धारण, श्रमिकों के बारे में जानकारी रखना तथा कार्य के प्रति उन्हें जागरूक करना, श्रमिकों की योग्यतानुरूप कार्य सौंपना, उनसे सम्बन्धित अभिलेख तैयार करना तथा श्रम बाजार की जानकारी रखना।

4.प्रशिक्षण तथा श्रम विकास - इसके अन्तर्गत अन्तर्विभागीय कार्य विवरण तथा कर्मचारियों के मध्य सम्बन्ध ज्ञात करना, कर्मचारियों का प्रशिक्षण, अधिकारियों एवं पर्यवेक्षकों के हेतु विकास कार्यक्रम तैयार करना, श्रमिकों के पठन-पाठन की सुविधा उपलब्ध कराना, शिक्षा एवं व्यवसायिक मार्ग दर्शन की व्यवस्था करना तथा कर्मचारियों मूल्यांकन करना कार्य हैं।

5.मजदूरी तथा वेतन प्रशासन - कर्मचारी कुशलता मूल्यांकन तथा वेतन/मजदूरी निर्धारित करना, कार्य हेतु प्रोत्साहन-मौद्रिक या अन्य विधियों का उपयोग करना, श्रमिकों को पेर्र णा प्रदान करना, कार्य निष्पादन एवं मूल्यांकन सम्बन्धी कार्य करना, श्रमिकों को सहयोगी एवं नियमित करने की चेष्टा में लगे रहना, छुट्टी, अनुपस्थिति सम्बन्धी नीतियों का नियमों का निर्माण करना कार्य हैं।
शक्ति संतुलन -कार्यभार निर्धारित करना, पदोन्नति, पदच्युति, स्थानान्तरण, कार्य मुक्ति से उत्पन्न समस्याओं का प्रबंध करना, श्रमिकों सम्बन्धी सूचनाएँ एकत्र करना तथा मूल्यांकन योजनाएँ बनाना, वरिष्ठता तथा अनुशासन सम्बन्धी विवरण रखना तथा चयन विधियों का निर्धारण करना।
कर्मचारियों तथा प्रबंधन के बीच सम्बन्ध- कर्मचारियों से व्यक्तिगत सम्बन्ध रखना, श्रमसंघों से तालमेल बनाये रखना, सामूहिक सौदेबाजी, परिवाद निवारण प्रणाली, पंचनिर्णय तथा नियोगी-नियोक्ता समितियाँ बनाना।
कार्य के घंटे एवं दशाओं के निर्धारण तथा विश्रामकाल एवं मनोरंजन की व्यवस्था करना।
स्वास्थ्य एवं सुरक्षा- श्रमिकों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की दृष्टि से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना, मशीनरी की जाँच व्यवस्था करना एवं दुर्घटनाएँ क्षतिपूर्ति योजनाएँ सुलभ कराना।
कर्मचारियों के साथ सम्प्रेषण आरै उनसे सम्बन्धित शोध की व्यवस्था बनाना ताकि शोध के निष्कर्षो से सम्प्रेषण तथा मानव संसाधन-प्रबंधन में नये ज्ञान का लाभ प्राप्त किया जा सके।

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